नई दिल्ली। भारत का सबसे बड़ा सरकारी बैंक भी लोन संबंधी गड़बड़ियों का शिकार हो गया है। इस बैंक में जमा खाताधारकों के पैसों को बैंक अधिकारियों ने ऐसे लोगों को बतौर लोन दे दिया जो अब चुकता ही नहीं कर रहे हैं। काफी उठापटक के बाद चौथी तिमाही यानी जनवरी-मार्च 2018 में 7,718 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। इस आंकड़े के सामने आते ही देश भर के बैंक कारोबारियों में हलचल मच गई है। यह बैंक इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा घाटा है।
घाटे का इससे बड़ा आंकड़ा पिछले हफ्ते पंजाब नेशनल बैंक दिखा चुका है। ये वही बैंक है जिसे हीरा व्यापारी नीरव मोदी ने 13,000 करोड़ रुपए से अधिक की चपत लगा दी थी और इससे पहले कि बैंक और भारतीय रिज़र्व बैंक को इसका पता चलता वो आराम से विदेश फ़रार हो गए।पंजाब नेशनल बैंक ने अपनी बैलेंस शीट दिखाते हुए कहा था कि जनवरी-मार्च तिमाही में उसे 13,417 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। स्टेट बैंक को अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में 2,416 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था यानी चौथी तिमाही में ये घाटा बढ़कर तीन गुना हो गया है।
क्या है घाटे की वजह
देश के दूसरे सरकारी बैंकों की तरह भारतीय स्टेट बैंक भी नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स यानी एनपीए के मकड़जाल में फंसा हुआ है। यानी बैंक ने अपने ग्राहकों को जो कर्ज़ दिए हैं उनमें से कई इसे लौटा नहीं रहे हैं। या फिर लोन घोटाला हुआ है। फर्जी कारोबारियों या कंपनियों को लोन दिया गया है। हालांकि बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार को उम्मीद है इन एनपीए में से बैंक आधे से अधिक की वसूली करने में कामयाब रहेगा। संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने कहा, "स्टेट बैंक ने 12 बड़े कर्ज़दारों का नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल में ले गया है और बैंक को उम्मीद है कि जब बैंकरप्सी की प्रक्रिया होगी तो बैंक का घाटा 50 से 52 फ़ीसदी से अधिक नहीं होगा।
तो क्या बैंक का अधिकतर लोन कॉर्पोरेट को जाता है। रजनीश कुमार ने कहा कि ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा, "बैंक के कुल घरेलू कर्ज़ में रिटेल लोन का हिस्सा लगभग 57 फ़ीसदी है और बाकी का 43 फ़ीसदी कॉर्पोरेट लोन है।