वैश्वीकरण: दुनिया और बिखर गई | EDITORIAL

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। वैश्वीकरण के 25 साल बाद ऐसा लगता है कि विश्व में कुछ और बंटा ही नही है, बल्कि यह बिखर भी गया है। जानबूझकर की गई गलतियों के दुष्प्रभाव दिखने लगे हैं। विश्व व्यापार के वे नियम, जो उस समय के अमीर देशों ने गरीब लोगों और पर्यावरण के हितों को ताक पर रख कर बनाए थे, उन तथाकथित अमीर देशों के लिए भी मददगार साबित नहीं हो रहे हैं। यह सही है कि वैश्वीकरण ने बाजारों को जोड़ा है, व्यापार को खोला है और दुनिया में कुछ देशों को और ज्यादा समृद्ध बनाया है। परिणामत: इंटरनेट की अप्रत्याशित वृद्धि। इसने लोगों को जोड़ा है, लेकिन सबसे अहम यह है कि यह हमारे क्षेत्र में बाजार का संवाहक बना है। 

इंटरनेट ने कारोबार का ढर्रा बदल दिया है। कारोबार परंपरागत दुकानों से बाहर होने लगा है। इनकी जगह अब इंटरनेट आधारित कारोबार, निगमित ढांचे और धन उगाही करने वाले तंत्र ने ले ली है। यह तंत्र कर चोरी से लेकर गोपनीय सूचनाएं चुराने तक में शामिल है। सोशल मीडिया के इस दौर में हमने ऊंची छलांग लगाई है। इस खेल में हम नए किरदार बन गए हैं। हमने सभ्यता और क्रूरता के बीच की रेखा पार कर ली है। हमें ऐसा लगा कि दुनिया में हम बदलाव ला रहे हैं। ऐसा बोध हुआ कि सोशल मीडिया का हिस्सा बनकर हम सरकार पर कदम उठाने के लिए दबाव बना रहे हैं। हमें लगा कि हम पूरी तरह नियंत्रित हैं और बदलाव लाने की अगुआई कर रहे हैं। तकनीक ने हमारी आंखों पर पट्टी  बांध दीहै । हाल में सामने आए फेसबुक कांड ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। व्यक्तिगत तुच्छ गोपनीयता की तो बात ही छोड़ दीजिए। दरअसल हमसे अपना नेता चुनने की आजादी छीनी जा रही है। 

25 बरस पहले 1992 में दुनिया में असमानता और विभाजन अधिक था। अब 2018 में स्थिति उससे भी बदतर हो गई है। जलवायु परिवर्तन से चीजें आसान नहीं हो रही हैं। पूरी दुनिया में आसन्न प्रलय के संकेत मिलने लगे हैं। प्राकृतिक आपदाओं से सबसे अधिक चोट गरीब खासकर किसानों को झेलनी पड़ती है। आपदाओं से बचने के लिए उनके पास पर्याप्त सुरक्षा उपाय भी नहीं हैं। लगता है प्रलय आ रही है और पूरी दुनिया इसकी शिकार होगी। सवाल यह है कि हम क्या कर सकते हैं? जो घटित हो चुका है, उसे हम बदल नहीं सकते। हालांकि हम एक दूसरे तरीके से नुकसान की भरपाई जरूर कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हमें एक बार फिर मिल बैठकर नए सिद्घांत प्रतिपादित करने चाहिए, जो दुनिया के देशों, कारोबार और लोगों के लिए आगे की राह प्रशस्त कर सके। अभी जो ढर्रा चल रहा है, उससे अगले 25 बरस की कल्पना भयावह दिखाई देती है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!