भोपाल। 29 मई को कैबिनेट मीटिंग के बाद जो खबर बाहर आई उसके अनुसार अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन कर दिया गया है एवं अब वो शिक्षक कहलाएंगे परंतु ऐसा नहीं हुआ। असल में जो कुछ हुआ है वो ठीक वैसा ही है जैसे बच्चों को कटोरी में चांद दे दिया जाता है। बच्चे को लगता है कि चांद उसकी संपत्ति हो गया जबकि ऐसा कुछ होता नहीं है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि इस बार नियम कुछ इस तरह के बने हैं कि प्रमोशन के लिए अध्यापकों को पहाड़ी से किले तक कच्चे सूत पर चलकर जाना होगा, जो पहुंच गया वो प्रमोट नहीं तो घायल।
आजाद अध्यापक संघ के गुना के पदाधिकारी नरेंद्र भारद्वाज और राजमणि दुबे बताते हैं कि प्रदेश सरकार ने अध्यापक सवंर्ग के साथ एक बार फिर धोखा किया है। सातवां वेतनमान और षिक्षा विभाग की मांग पर सरकार ने अध्यापकों को तीसरी बार नया पदनाम दे दिया। अब आशंका है कि शिक्षक संवर्ग डाइंड कैडर में ही रहेगा। समान कार्य समान वेतन की मांग का नए कैडर में मखौल उड़ा दिया गया। अपने साथ हुए इस छलावे से अध्यापकों में आक्रोश है। पिछले बीस साल से आंदोलनरत अध्यापकों को इस बार सरकार से बड़ी उम्मीद थी। शिक्षा विभाग की मांग की जा रही थी, जिससे अध्यापकों को बीमा, पेंशन, तबादला व शिक्षक संवर्ग के समान अन्य सुविधाएं मिलतीं, लेकिन सरकार ने राज्य शिक्षा सेवा का गठन कर अध्यापकों को फिर जरूरी सुविधाओं से महरूम रखा।
नए कैडर में भी उक्त सुविधाएं के बारे में कोई जिक्र नहीं है, लेकिन जो नई सेवा शर्तें थोपी जा रही हैं, वह विसंगतिपूर्ण हैं। अब वरिष्ठता का निर्धारण अध्यापक संवर्ग दिनांक से किया जाएगा, जिसे 2007 में बनाया था, जबकि कई अध्यापक 1998 से कार्य कर रहे हैं। वरिष्ठता में तीन साल की संविदा अवधि की गणना भी नहीं की जाएगी। वर्तमान में वरिष्ठता की गणना प्रथम नियुक्ति दिनांक से होती है। प्रमोशन परीक्षा द्वारा किया जाएगा, लेकिन परीक्षा अर्हता में भी जातिगत भेदभाव किया जाएगा। प्रयोगशाला शिक्षक की पदोन्नति और गुरूजियों की वरिष्ठता का कोई प्रावधान नए कैडर में नहीं है।
प्रमोशन के लिए ग्रामीण क्षेत्र में तीन वर्ष सेवा करनी होगी, इस नियम से उन अध्यापकों को परेशानी हो सकती है, जिनकी नियुक्ति शहरी क्षेत्र में हुई और तबादला नीति नहीं होने से वह सालों से एक ही संस्था में कार्यरत हैं। इसके अलावा तबादला नीति के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं किया गया। अवकाश नियमों को लेकर राज्य शिक्षा सेवा कोई उल्लेख नहीं है।
राज्य शिक्षा सेवा में सातवां वेतन देने की घोषणा जुलाई 2018 से की गई है, जबकि पूर्व में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा था कि अध्यापकों को सभी कर्मचारियों के साथ जनवरी 2016 से सातवां वेतन दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं होने से समान कार्य समान वेतन का मखौल उड़ाया गया है। सरकार ने मंगलवार को कैबिनेट में प्रस्ताव कर नए कैडर को मंजूरी दे दी है, लेकिन अध्यापक इससे खुश नहीं है। आजाद अध्यापक संघ की मांग है कि शिक्षक संवर्ग को जीवित कर उसमें अध्यापकों का संविलयन किया जाए। अध्यापकों के साथ हमेशा भेदभाव किया। छठवां वेतनमान दस साल बाद देकर अध्यापकों की वेतन बढ़ाई, लेकिन कुछ माह बाद ही वेतन कम भी कर दी गई। अध्यापकों को बीमा, तबादला, पेंशन, ग्रेच्युटी, शिक्षकों के समान सांतवा वेतनमान व अवकाश आदि सुविधाओं की जो उम्मीद थी, वह सब मिलने की अभी कोई उम्मीद नहीं दिख रही है।
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