भोपाल। राजनीति की समझ रखने वाला शायद ही कोई हो जो 'अनिल माधव दवे' को ना जानता हो। वही 'अनिल माधव' जिन्होंने 2003 में आत्मविश्वास से लवरेज दिग्विजय सिंह की सरकार गिराने की रणनीति बनाई थी। दुनिया को उमा भारती का चेहरा दिखा लेकिन सब जानते हैं कि अनिल माधव की रणनीति नहीं होती तो हाल 1998 जैसा ही होता। अब कांग्रेस में भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा है। उमा भारती की तरह कमलनाथ फ्रंट लाइन पर रहेंगे जबकि दिगिवजय सिंह 'अनिल माधव' की तरह पर्दे के पीछे काम करेंगे।
कांग्रेस की सेना में कौन कहां लड़ेगा
सूत्र बताते हैं कि मध्यप्रदेश के दिग्गजों में कुछ नीतिगत समझौते हुए हैं। फ्रंट लाइन पर प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ही रहेंगे। उनके अलावा कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी छापामार लड़ाई करते नजर आएंगे। उनको प्रदेश भर में युवक कांग्रेस और किसानों के साथ मिलकर शिवराज सरकार की नाक में दम कर देने वाले आंदोलन करने का जिम्मा सौंपा गया है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर्दे के पीछे रहकर कमलनाथ के लिए रणनीतियां तैयार करेंगे। जबकि कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत पर्दे के पीछे रहते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए काम करेंगे।
2003 में क्या हुआ था 2018 में क्या होगा
राजनीति के जानकार बताते हैं कि दिग्विजय सिंह के खिलाफ माहौल तो 1998 में ही बन गया था लेकिन भाजपा बिखरी हुई थी। उसके पास कोई रणनीति नहीं थी। वो दिग्विजय सिंह पर संगठित हमले नहीं कर पाई और उसका कोई चेहरा नहीं था इसलिए भाजपा हार गई। 2003 में भाजपा ने योजनाबद्ध तरीके से काम किया। इस बार कांग्रेस भी वैसा ही कर रही है। भाजपा ने 'अनिल माधव दवे' जैसे सूझबूझ वाले नेता को रणनीति का काम सौंपा था। कमलनाथ ने कांग्रेस के चाणक्य को यह जिम्मेदारी दी है। भाजपा में फ्रंट लाइन के नेताओं के पास प्लानिंग थी और जबर्दस्त बैकअप मिल रहा था। इस बार कांग्रेस ने भी ऐसा ही किया है। फ्रंट लाइन पर जितने भी नेता भेजे जाएंगे, उनका बैक आॅफिस पहले तैयार कर दिया जाएगा। ताकि कोई पार्टी लाइन से बाहर ना जाए।
अब कांग्रेस में कोई मनमानी नहीं कर पाएगा
राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर का कहना है कि कमलनाथ प्रदेश की राजनीति में वरिष्ठतम नेताओं में हैं, उनकी राजनीतिक हैसियत है, इसके अलावा पार्टी हाईकमान ने जो अधिकार दिए हैं, उसका उपयोग करना वे जानते हैं। यही कारण है कि उन्होंने किसी भी नेता को पार्टी से बड़ा नहीं बनने दिया। मनमर्जी से यात्रा, दौरे करने की अनुमति नहीं दी। उन्होंने कहा कि अब तक जो अध्यक्ष बने, उन्हें कई नेता नजरअंदाज करते रहे और स्वयं को पीसीसी से ऊपर बताते रहे, नतीजतन सब बेलगाम थे, मगर अब ऐसा नहीं हो रहा है।