NEW DELHI | SUPREME COURT | यदि वयस्क कपल में से किसी एक की उम्र विवाह योग्य निर्धारित उम्र से कम भी है तब भी वो अपने साथी के साथ लिव इन रिलेशन में रह सकता है। यह अनुमति सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के साथ को अवैध करार नहीं दिया जा सकता और इसके खिलाफ किसी भी तरह का आपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं किया जा सकता। बता दें कि केरल हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने के अधिकार को ना तो कोई कोर्ट कम कर सकता है ना ही कोई व्यक्ति, संस्था या फिर संगठन।
क्या है मामला
बता दें कि कोर्ट के फैसलों के अलावा संसद ने भी घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 से महिलाओं के संरक्षण के प्रावधान तय कर दिए हैं। कोर्ट ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा कि अदालत को मां की किसी भी तरह की भावना या पिता के अहंकार से प्रेरित एक सुपर अभिभावक की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। दरअसल, ये मामला केरल का है। अप्रैल 2017 में केरल की युवती तुषारा की उम्र तो 19 साल थी यानी उसकी उम्र विवाह लायक थी पर नंदकुमार 20 ही साल का था। यानी विवाह के लिए तय उम्र से एक साल कम। शादी हो गई तो लड़की के पिता ने बेटी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया।
हाईकोर्ट में क्या हुआ था
केरल उच्च न्यायालय ने पुलिस को हैबियस कॉर्पस के तहत लड़की को अदालत में पेश करने का निर्देश दिया। पेशी के बाद कोर्ट ने विवाह रद्द कर दिया। लड़की को उसके पिता के पास भेज दिया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि दोनों हिंदू हैं और इस तरह की शादी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत एक शून्य विवाह नहीं है। धारा 12 के प्रावधानों के अनुसार, इस तरह के मामले में यह पार्टियों के विकल्प पर केवल एक अयोग्य शादी है।