NEW DELHI / NATIONAL NEWS | कहने को तो पेट्रोल-डीजल सरकारी नियंत्रण से बाहर हैं परंतु इनकी कीमतों पर चुनावी असर अक्सर दिखाई दे जाता है। 55 महीने के उच्चस्तर पर पहुंच गईं पेट्रोल-डीजल की कीमतों को कर्नाटक चुनाव तक स्थिर रखने के लिए कहा गया है। इसके बाद कंपनियां घाटा भरपाई के लिए फिर से कीमतें बढ़ाएंगी और यह एतिहासिक दरों तक जा सकतीं हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी इंडियन आयल कॉरपोरेशन (IOC) के चेयरमैन संजीव सिंह ने आज कहा कि कंपनी ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों को अस्थायी तौर पर स्थिर रखने का फैसला किया है।
सरकारी तेल कंपनियों ने कर्नाटक चुनाव से पहले पेट्रोल और डीजल के दामों की दैनिक समीक्षा का फैसला रोके जाने के बीच IOC ने यह बात कही है। चेयरमैन ने कहा कि ईंधन के मूल्य में तीव्र वृद्धि नहीं हो और ग्राहकों में घबराहट न फैले इसलिए यह फैसला लिया गया है।
करीब 15 दिनों से स्थिर हैं कीमतें
बता दें कि सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियां विगत 24 अप्रैल से पेट्रोल और डीजल के दाम में बदलाव नहीं कर रही हैं, जबकि इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में मानक मूल्यों में करीब तीन डॉलर प्रति बैरल की तेजी आयी है। हालांकि, चेयरमैन संजीव सिंह ने संकेत दिया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल कीमतों में वृद्धि जारी रहती है, तो कीमतें बढ़ेगी।
बोझ ग्राहकों पर नहीं
संजीव सिंह ने कहा कि हमने जरूरी वृद्धि का बोझ ग्राहकों पर नहीं डालकर अस्थायी रूप से ईंधन की कीमतों को स्थिर रखने का फैसला किया है। उन्होंने कहा 'हमें भरोसा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में मौजूदा तेल उत्पादों की कीमतों का कोई आधार नहीं है। इसीलिए हमने कुछ समय के लिये इंतजार करने का फैसला किया है।'
ग्राहकों में घबराहट पैदा होगी
सिंह ने कहा कि हमें जो आजादी मिली है, उसके तहत हम दैनिक आधार पर वृद्धि का बोझ ग्राहकों पर डाल सकते हैं लेकिन हमारा मानना है कि अंतरराष्ट्रीय तेल उत्पादों के दाम में वृद्धि का कोई उपयुक्त आधार नहीं है और उसका बोझ ग्राहकों पर डालने से अनावाश्यक रूप से ग्राहकों में घबराहट पैदा होगी। उन्होंने कहा कि इसीलिए हमने कुछ हद तक कीमत को स्थिर रखने का प्रयास किया है।
नहीं बढ़ी हैं ईंधन की कीमतें
इससे पहले, पेट्रोल के 55 महीने के उच्च स्तर 74.63 रुपये प्रति लीटर पर पहुंचने तथा डीजल के रिकार्ड 65.93 रुपये लीटर पर आने के साथ वित्त मंत्रालय ने आम लोगों को राहत देने के लिये उत्पाद शुल्क में कटौती से इनकार किया था। उसके बाद पेट्रोलियम कंपनियों ने ईंधन की कीमतें नहीं बढ़ाई हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार के मुताबिक
यह पूछे जाने पर क्या तीनों सरकारी तेल कंपनियों ने एक साथ खुदरा कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार के मुताबिक नहीं बढ़ाने का फैसला किया, सिंह ने कहा कि यह संभव है। उन्हें भी यही लगा हो कि कीमत वृद्धि का कोई आधार नहीं है और इसे नियंत्रित करने की जरूरत है।
रुपया भी डॉलर के मुकाबले कमजोर
डीजल की अंतरराष्ट्रीय मानक दर इस दौरान 84.68 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 87.14 डॉलर पहुंच गयी। साथ ही रुपया भी डॉलर के मुकाबले कमजोर होकर 65.41 से बढ़कर 66.62 पर पहुंच गया। इससे आयात महंगा हुआ है।
क्या कहा था पेट्रोलियम मंत्री ने
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने पिछले महीने उन रिपोर्ट को खारिज किया जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को लागत के मुताबिक ईंधन के दाम नहीं बढ़ाने और कम-से-कम एक रुपये प्रति लीटर का बोझ उठाने की बात कही गयी थी।