राकेश दुबे@प्रतिदिन। संसद का मॉनसून सत्र 18 जुलाई से 10 अगस्त तक चलेगा।, एनडीए के लिए यह सत्र मुश्किलें खड़ा करने वाला है। सबकी नजर 18 कार्यदिवसों में चलने वाले इस सत्र पर है। कई अहम विधेयकों के अलावा राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव भी इसी सत्र में होना है और यह एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके खिलाफ एकजुट विपक्ष के बीच जोर आजमाइश है। प्रधानमन्त्री को बहुत से लोगों के निहोरे करना होंगे। राज्यसभा में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए भाजपा की पूरी ताकत इस पद पर अपने उम्मीदवार को जिताने में लगाएगी। कहने को राज्यसभा में 69 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन तेलुगू देशम पार्टी अब एनडीए का हिस्सा नहीं है और शिवसेना से भी हाल के समय में भाजपा के रिश्ते खराब हो चुके हैं। ऐसे में राज्यसभा में अभी भाजपा के पास अपना उपसभापति बनाने के लिए पर्याप्त संख्याबल नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी को इस मामले में पर्याप्त समर्थन हासिल करने के लिए कुछ राजनीतिक समझौते करने ही होंगे।
सर्व विदित है गोरखपुर, फूलपुर चुनावों के बाद कैराना लोकसभा उप चुनावों में साझा विपक्ष की ताकत के आगे भाजपा को हार का समना करना पड़ा था। अब राज्यसभा में उपसभापति का चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो रहा है, संसदीय परम्परा के अनुसार उपसभापति का चुनाव अनिवार्य है। 245 सदस्यीय उच्च सदन में जीतने वाले उम्मीदवार को 122 मतों की जरूरत होगी। जो भाजपा के पास नहीं है।
अब रास्ता क्या है ? मोदी शाह की जोड़ी के पास एक विकल्प ये है कि यह पद टीआरएस या वाईएसआर कांग्रेस को दे दे। इस स्थिति में राज्यसभा के सभापति और उपसभापति दोनों पद आंध्र या तेलंगाना के पास चले जाएंगे। दूसरा विकल्प यह है कि भाजपा यह पद अन्ना द्रमुक को देने की पेशकश करे जिसके पास 13 सांसद हैं। भाजपा की निर्णायक जोड़ी इसमें से क्या पसंद करेगी, जल्दी पता चलेगा। राज्यसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की सदस्य संख्या 51 रह गई है। लेकिन विपक्षी एकता के हालात में तृणमूल कांग्रेस के 13, समाजवादी पार्टी के 6, टीडीपी के 6, डीएमके के 4, बसपा के 4, एनसीपी के 4, माकपा के 4, भाकपा 1 व अन्य गैर भाजपा पार्टियों की सदस्य संख्या को मिला दें तो वे भाजपा पर भारी पड़ते नज़र आ रहे हैं। अगर 9 सदस्यों वाली बीजू जनता दल और शिवसेना अपनी तटस्थता बनाए रखते हैं तो विपक्ष एक बार फिर मोदी-शाह की जोड़ी को पटखनी दे सकता है, जिसके मूड में वह दिख रहा है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।