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9 महीने देरी से आई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तत्कालीन परिस्थितियों में भीड़ को तितर-बितर करने और पुलिस बल की जीवन रक्षा के लिए गोली चलाना नितांत आवश्यक और न्यायसंगत था। आयोग ने गोलीकांड में निलंबित हुए कलेक्टर स्वतंत्र कुमार और एसपी ओपी त्रिपाठी को भी सीधे तौर पर दोषी नहीं ठहराया है। दरअसल, आयोग को मंदसौर गोलीकांड पर अपनी रिपोर्ट तीन महीने पहले ही सौंपनी थी, लेकिन इसका कार्यकाल बढ़ा दिया गया था।
नियमों के अनुसार पहले पैर पर चलानी चाहिए थी गोली
हालांकि जस्टिस जेके जैन आयोग की रिपोर्ट में पुलिस और जिला प्रशासन के सूचना तंत्र और आपसी सामंजस्य की कमी बताई गई है। रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस और जिला प्रशासन तंत्र और आपसी सामंजस्य के चलते ही जिले में आंदोलन ने जोर पकड़ लिया और उग्र हो गया था। रिपोर्ट में गोली चलाने के नियमों के उल्लंघन की बात भी कही गई है। दरअसल, नियमों के अनुसार पुलिस को पहले पैर में गोली चलानी चाहिए थी लेकिन, प्रशासन ने इसका ध्यान न रखते हुए सीधे गोली दाग दी। जिसके चलते 5 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
मंदसौर गोलीकांड
बता दें जून 2017 में मध्यप्रदेश में किसानों ने कर्जमाफी सहित अन्य मांगों को लेकर आंदोलन किया था। इसी दौरान हिंसा भड़कने पर पुलिस ने मंदसौर में छह जून को किसानों पर गोली चलाई थी, जिसमें पांच किसानों की मौत हुई थी और छठे किसान की पिटाई से जान गई थी। जिसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए थे।
किन बिंदुओं पर जांच कर रहा था जांच आयोग
बता दें जांच आयोग पांच बिंदुओं पर जांच कर रहा था-घटना किन परिस्थितियों में घटी, क्या पुलिस द्वारा जो बल प्रयोग किया गया, वह घटना-स्थल की परिस्थितियों को देखते हुए उपयुक्त था या नहीं, यदि नहीं तो इसके लिए दोषी कौन है। इसके अलावा क्या जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन ने तत्समय निर्मित परिस्थितियों और घटनाओं के लिए पर्याप्त एवं सामयिक कदम उठाए थे ?
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