राकेश दुबे@प्रतिदिन। कांग्रेस ने देश में बड़ा बवाल मचा दिया था, जैसे ही प्रणब दा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दीक्षांत समारोह में भाग लेने का निमन्त्रण स्वीकार किया था। सारे छोटे-बड़े नेताओं के बाद कांग्रेस ने सबसे भावुक शर्मिष्ठा कार्ड तक खेला। दादा टस से मस नहीं हुए और वो सब साफ-साफ कह दिया जो देश के लिए जरूरी है। कोई भी दादा के नजरिये से असहमत नहीं हो सकता। जो भी अपने को राष्ट्रभक्त मानते हैं, उनको आज इसी प्रकार के पाथेय पर चलना चाहिए। बिना किसी शंका कुशंका के। यही देश भक्ति और राष्ट्रवाद है। देश भक्ति और राष्ट्रवाद के शब्दों के अर्थ कांग्रेस को समझना चाहिए। दादा जैसे गुरु से प्रबोधन लेना चाहिए। अन्य को भी इससे सीखने को मिल सकता है, बहुत कुछ।
क्या कोई इस बात से इंकार कर सकता है कि देश के प्रति निष्ठा ही देशभक्ति है, देशभक्ति में देश के सभी लोगों का योगदान है। देशभक्ति का मतलब देश के प्रति आस्था से है। यह मूल था दादा के भाषण का। अपने भाषण में उन्होंने कहा हिन्दू एक उदार धर्म है, ह्वेनसांग और फाह्यान ने भी हिंदू धर्म की बात की है। राष्ट्रवाद सार्वभौमिक दर्शन 'वसुधैव कुटुम्बकम्, सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः' से निकला है। भारत दुनिया का सबसे पहला राष्ट्र है, भारत के दरवाजे सबके लिए खुले हैं। भारतीय राष्ट्रवाद में एक वैश्विक भावना रही है, हम विवधता का सम्मान का करते हैं। सहिष्णुता हमारी सबसे बड़ी पहचान है|। भेदभाव और नफरत से भारत की पहचान को खतरा है।
दादा ने याद दिलाया कि नेहरू ने कहा था कि सबका साथ जरूरी है, तिलक ने कहा था कि स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। तिलक ने कहा था कि स्वराज में धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं होगा। दादा ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रवाद किसी धर्म, भाषा या जाति से बंधा हुआ नहीं है, संविधान में आस्था ही असली राष्ट्रवाद है। हमारा लोकतंत्र उपहार नहीं है बल्कि लंबे संघर्ष का परिणाम है। देश में इतनी विविधता होने के बाद भी हम एक ही संविधान के तहत काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश की समस्याओं के लिए संवाद का होना जरूरी है। विचारों में समानता लाने के लिए संवाद जरूरी है।
सच मायने में चंद शब्दों के अर्थ और व्याख्या ने देश में “देश भक्ति” और “राष्ट्र-प्रेम” को एक दूसरे से इतना अलग कर दिया है कि समानार्थी होते हुए भी अलग-अलग पालों पड़े हुए है। देशभक्ति कहते ही उससे एक सन्गठन जुड़ता है तो राष्ट्रप्रेम कहते ही दूसरा सन्गठन खुश होता है। भाषण से पहले और भाषण में प्रणब दा ने वह सब कह सुन दिया है, जो आज की जरूरत है। खासकर कांग्रेस के लिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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