फोटो एक वर्ष पुराना 2017 में लिया गया था |
भोपाल। सीएम शिवराज सिंह ने अपने 51 जासूसों की मीटिंग बुलाई है। ये एक साल पहले 2017 में मध्यप्रदेश के हर जिले में तैनात किए गए थे। इन्होंने पिछले 1 साल में हर जिले की जमीनी हकीकत की रिपोर्ट सीधे सीएम सचिवालय को भेजी है। अब एक साल बाद इनका सम्मेलन होेने जा रहा है। ये सभी संविदा नियुक्ति पर थे और इनका कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है। उम्मीद है चुनाव को देखते ही इनका कार्यकाल बढ़ा दिया जाएगा। सरकारी दस्तावेजों में इन्हे सीएम फेलोज लिखा गया है। यहां बता दें कि Fellows का अर्थ होता है अध्येता, साथी, मित्र, सहचर।
कब हुईं नियुक्तियां, कितना वेतन दिया
चीफ मिनिस्टर यंग प्रोफशनल्स फॉर डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत एक साल के लिए सीएम फेलोज़ की नियुक्ति की गई थी। सरकार ने प्रदेश के सभी जिलों में सीएम फेलोज़ के रुप में 51 रिसर्च एसोसिएट्स की नियुक्ति की थी। इनका साल भर का पैकेज औसतन साढ़े पांच लाख था। सीएम फेलो आईआईटी, एनआईटी, लॉ ग्रेजुएट्स, टीआईएस जैसे बड़े संस्थानों से पास आउट और डेवलपमेंट के क्षेत्र में काम कर रहे युवाओं की एक टीम है। जो प्रदेश के जिलों में तैनात रहकर सीएम सचिवालय को डायरेक्ट फीडबैक दे रही है।
फीडबैक तो कलेक्टर भी देते हैं फिर फेलोज की क्या जरूरत
बड़ा सवाल यही है कि सरकार को फीडबैक देने के लिए हर जिले में एक बहुत बड़ा अमला होता है। इसके अलावा एनजीओ और कुछ प्राइवेट ऐजेंसियां भी संविदा के आधार पर सरकार के साथ करतीं हैं फिर सीएम फेलोज की क्या जरूरत थी। क्या सीएम शिवराज सिंह को भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों, कलेक्टरों पर भरोसा नहीं रहा। क्या वो अपने ही सिस्टम पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं।
सरकारी वेतन के बदले कुछ और तो नहीं करवाया
सीएम फेलो आईआईटी, एनआईटी, लॉ ग्रेजुएट्स, टीआईएस जैसे बड़े संस्थानों से पास आउट और डेवलपमेंट के क्षेत्र में काम कर रहे युवाओं की एक टीम है। इनका वेतन करीब 5 लाख रुपए वार्षिक है। सवाल यह है कि इस तरह के लोगों की नियुक्ति केवल फीडबैक या सर्वे के लिए तो नहीं की जा सकती। दरअसल, इस तरह के प्रोफेशनल्स ही फीडबैक के लिए किसी भी वेतन पर ज्वाइन नहीं करते, वो भी तब जबकि संविदा नियुक्ति स्पष्ट रूप से केवल 1 साल के लिए हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकारी वेतन के बदले इनसे कुछ और काम करवाया गया हो। जहां इनकी योग्यताओं का पूरा उपयोग किया गया हो। कुछ ऐसा जिसकी अनुमति सरकारी दस्तावेजों में नहीं दी जा सकती परंतु राजनीति की तिकड़मबाजियों के लिए जरूरी हो।
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