भोपाल। मंदसौर गैंगरेप के बाद गांधीवादी विचारक एसएन सुब्बाराव ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि इस तरह का नैतिक पतन तो अंग्रेजों के समय भी नहीं था। उस जमाने में लड़कियां ज्यादा सुरक्षित थीं। वो आजादी से यहां वहां जा सकतीं थीं। परिवार और परिजन ही नहीं दुश्मन भी लड़कियों की हिफाजत करते थे। हम अंग्रेजों से दुश्मनी रखते थे परंतु उनकी बेटियों का सम्मान करते थे। उन्हे कभी तंग नहीं करते थे।
बता दें कि सुब्बाराव 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गांधीजी के साथ शामिल हुए और जेल भी गए। वे पंडित जवाहरलाल नेहरू और के. कमराज जैसे दिग्गज नेताओं के सानिध्य में रहे। उन्होंने 1954 में पहला गांधी आश्रम बनाकर बागियों के लिए कुख्यात चंबल क्षेत्र में जौरा गांव में 10 माह तक कैंप किया। अपने इस आश्रम के माध्यम से उन्होंने 1972 में कुख्यात डकैत मोहन सिंह, माधो सिंह समेत दर्जनों नामचीन डकैतों का समर्पण कराया था। सुब्बाराव आयकर विभाग के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने भोपाल आए थे।
अंग्रेजों से दुश्मनी थी लेकिन उनकी बेटियों को तंग नहीं करते थे
एक बातचीत के दौरान सुब्बाराव ने कहा कि सात साल की बच्ची के साथ हुई हैवानियत से मन आहत है। हमारे देश में हमेशा से ही नारियों का सम्मान रहा है। चाहे हम कितनी भी विषम परिस्थिति में क्यों न रहे हों। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन जोरों पर था। लाखों भारतीय अंग्रेजों के जुल्मों का शिकार हो रहे थे। इस आंदोलन को कवर करने एक ब्रिटिश पत्रकार भारत आया।
उसने वापस लौटकर जो रिपोर्ट बनाई उसमें लिखा कि पूरा भारत ब्रिटिश दमन से त्राहि-त्राहि कर रहा है, लेकिन बांबे (अब मुंबई) में ब्रिटिश किशोरियां आराम से घूमते-फिरते देखी जा रहीं हैं। हैरानी की बात है कि इतने अत्याचार झेलने के बाद भी भारतीय इन्हें परेशान नहीं कर रहे। यह था हमारा असली भारत, लेकिन सात साल की लड़की के साथ हैवानियत की खबरें पढ़कर, सिर शर्म से झुक जाता है।
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