विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस कुछ भी करने को राजी दिख रही है। चाहे जम्मू-कश्मीर में महबूबा की पार्टी पीडीपी को समर्थन या बिहार में नितीश की अगुवाई और तो राज्यसभा के उपसभापति चुनाव में अपना दावा छोड़ने का साथी दलों को साफ संदेश दे दिया है। पूरी कोशिश सत्ता पक्ष के उम्मीदवार को रोकने की है। एनडीए उम्मीदवार के सहारे भाजपा की रणनीति को देखते हुए कांग्रेस ने संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार उतारने के लिए सियासी सक्रियता तेज कर दी है। कांग्रेस के इस रुख के बाद अब लगभग तय माना जा रहा कि संयुक्त विपक्ष का उपसभापति पद का उम्मीदवार तृणमूल कांग्रेस से होगा। बीजेडी को गैर कांग्रेसी विपक्षी उम्मीदवार के पक्ष में राजी करने का जिम्मा टीएमसी प्रमुख पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर सौंपा गया है। राज्यसभा के उपसभापति चुनाव में बीजेडी का सियासी रुख चुनावी तराजू का संतुलन किसी ओर झुका सकता है। सदन में आंकड़ों के गणित में एनडीए के पास बहुमत नहीं है मगर अन्नाद्रमुक, टीआरएस और वाइएसआर कांग्रेस के सरकार के साथ जाने के पुख्ता आसार हैं। ऐसे में चुनावी बाजी पूरी तरह बीजेडी के रुख पर निर्भर मानी जा रही है।
राज्य सभा के उप सभापति के लिए अकाली दल के सांसद नरेश गुजराल का नाम उपसभापति पद के लिए उछाल एनडीए ने बीजेडी का समर्थन हासिल करने का दांव चला है। ओडि़सा की सियासत में भाजपा जिस तरह नवीन पटनायक के खिलाफ आक्रामक है उसे देखते हुए सीधे सीधे भाजपा प्रत्याशी का समर्थन करने से बीजेडी परहेज करेगी। इसीलिए एनडीए के घटक दल के चेहरे को आगे कर बीजेडी को विपक्षी खेमे में जाने से रोकने की सियासी कोशिशें हो रही हैं।विपक्षी गोलबंदी के बावजूद कांग्रेस को मौजूदा सियासी समीकरणों में अपने उम्मीदवार की गुंजाइश नहीं दिख रही। बीजेडी की परंपरागत विरोधी सियासत को देखते हुए कांग्रेस भी मान रही कि उसके उम्मीदवार को वह सीधे समर्थन नहीं देगी। टीएमसी का चेहरा विपक्ष का उम्मीदवार बनता है तो बीजेडी को राजी करना अपेक्षाकृत कम मुश्किल होगा।
ममता बनर्जी के नवीन पटनायक से अच्छे रिश्तों के मद्देनजर यह दाव कह जा रहा है। इसीलिए तृणमूल कांग्रेस के चेहरे को विपक्ष का प्रत्याशी बनाने का कांग्रेस ने खाका लगभग तैयार कर लिया है। अब ममता बनर्जी को तय करना है कि टीएमसी का उपसभापति पद के लिए चेहरा कौन होगा। सियासी गलियारों में टीएमसी सांसद सुखेंदू शेखर राय उम्मीदवार के दावेदार माने जा रहे।विपक्षी खेमे की अगुआई कर रही कांग्रेस केलिए उपसभापति का चुनाव सरकार के उच्च सदन में संपूर्ण सियासी वर्चस्व को थामने के लिए अहम है। साथ ही 2019 के सियासी महासंग्राम में विपक्षी कुनबे की एकजुटता की दशा-दिशा के लिहाज से भी बेहद मायने रखता है। इसीलिए राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और कांग्रेस के रणनीतिकार इस सियासी कसरत में एनडीए को गुंजाइश नहीं देने की हर राह तलाश रहे।
बिहार में कांग्रेस के कुछ विधायकों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रशंसा करने के साथ ही महागठबंधन में उनकी वापसी का समर्थन किया है। हालांकि कांग्रेस की राज्य इकाई ने अपने विधायकों की राय को उनकी व्यक्तिगत राय बताते हुए खारिज कर दिया और उन्हें ऐसे मुद्दों पर अनावश्यक बयान देने से बचने को कहा है। दूसरी ओर आरजेडी के नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा था कि महागठबंधन में नीतीश कुमार के लिए सभी दरवाजे बंद हैं।
वहीं अपनी पार्टी के इन विधायकों के उक्त बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बिहार प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी ने कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत राय हो सकती है और उन्हें ऐसे मुद्दों जिसे केवल पार्टी हाई कमान द्वारा तय किया जाना है, पर अनावश्यक बयान जारी नहीं करने की सलाह दी है। कादरी ने कहा कि दोनों विधायकों के बयान पार्टी की राज्य इकाई के भीतर किसी भी 'गड़बड़ी' का संकेत नहीं देते हैं। उन्होंने बिहार में अपनी पार्टी को अटूट बताते हुए तेजस्वी के कथन को सही ठहराते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि नीतीश जी स्वयं बीजेपी से नाता तोड़कर एनडीए से अब निकलना चाहते हैं।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।