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सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही दिल्ली सरकार उसे अपने हिसाब से लागू करने में जुटी और इस क्रम में वह सबसे पहले अधिकारियों की नियुक्ति-तबादले करने की दिशा में आगे बढ़ी, लेकिन उसका सामना इस तथ्य से हुआ कि ऐसा करना तो उप राज्यपाल का अधिकार है और यह अधिकार गृह मंत्रलय की 2015 की जिस अधिसूचना से मिला है उसे सुप्रीम कोर्ट ने रदद नहीं किया है। कहना कठिन है कि शीर्ष अदालत दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल के बीच वह सामंजस्य पैदा कर सकती है जो दिल्ली के शासन को सुगमता से चलाने के लिए आवश्यक है।
उप राज्यपाल से मुलाकात के बाद अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर तोहमत मढ़ने में देर नहीं की। उनके मुताबिक केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इन्कार कर रही है और अगर वह ऐसा करेगी तो फिर देश में अराजकता फैल जाएगी। उन्होंने यह रेखांकित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी कि केंद्र सरकार का एक मात्र लक्ष्य दिल्ली सरकार को परेशान करना है। देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली सरकार वह सब कुछ नहीं कर सकती जो करने का अधिकार अन्य राज्यों की सरकारों को है। यह तीर्थ योजना भी अन्य राज्य सरकारों की नकल है। मुश्किल यह है कि आम आदमी पार्टी अपनी सरकार को अन्य राज्यों से कमतर मानने को तैयार नहीं। सीमित अधिकारों के साथ अन्य नेता दिल्ली में बिना किसी झगड़े-झंझट के सरकार चला चुके हैं। वर्तमान दिल्ली सरकार के कदम उसकी जिद के कारण कितने लोकप्रिय होंगे यह समय बतायेगा।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।