लंबे अरसे से कायम इस धारणा में कोई फर्क नहीं आ पा रहा है कि राहुल गाँधी राजनीति को लेकर गंभीर नहीं हैं, कारण साफ है कि वे अब तक कुछ ऐसा करने में नाकाम रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हे गंभीरता से लिया जाये। उनकी एक बड़ी समस्या रही है, वे किसी एक मुद्दे पर वे बहुत प्रभावशाली नज़र आते हैं तब ही कुछ ऐसा घट जाता है कि उनकी तमाम मेहनत पर पानी फिर जाता है। एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उनका छबि निर्माण अंतर्विरोध से घिरा हैं। बहुत हाथ- पैर मारने पर भी वे सफल नही हो पा रहे हैं।
2009 से 2014 में उनकी छबि तेज तर्रार युवा की बनाने की गई। 2012 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा के चुनावी मंच से राहुल गांधी का आस्तीन चढ़ाकर पूछना-क्या आपको गुस्सा नहीं आता? आपको गुस्सा आना चाहिए। कहने वाले राहुल गाँधी अब नैन मट्टका और जादू की झप्पी पर आ गये हैं। कभी समाजवादी पार्टी का घोषणा पत्र बताते हुए अपनी जेब से एक कागज निकालकर टुकड़े-टुकड़े करने का अंदाज़ बदल गया है। अब सबको गले लगाते चलो, के गाँधी भाव का उभार उनके छबि निर्माता कर रहे हैं।
मौजूदा राजनीति का जो तेवर है, उसमे उनकी छबि भावी प्रधानमंत्री की गढने की असफल कोशिश उनके समर्थक या मार्ग दर्शक कर रहे हैं। उनके अनुमान गलत हैं। राहुल गांधी कभी अपने मजाकिया स्वभाव के लिए मशहूर नहीं हुए लेकिन ट्विटर पर अब वे कुछ अलग अंदाज दिखा रहे हैं। उनके वन लाइनर में अब एक नई धार है। यह पूछने पर कि उनके ट्वीट्स कौन लिखता है तो इसके जवाब में राहुल ने अपने फेवटेर डॉगी `पिडी’ का वीडियो पोस्ट करके कहा कि यही मेरे मैसेज लिखता है। क्या संदेश जाता है, ऐसी बातों से।
लगता है किसी ने उन्हें यह भी सुझा दिया है कि हिंदुत्व से दूरी कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रही है तो वे इस हद तक धार्मिक हुए कि चुनावी सभा में अपने मंच पर वे नारियल फोड़ने और अगरबत्ती जलाने लगे। उनके छबि निर्माता कर्मकांडी हिन्दू होने के सबूत के रूप में उनकी जनेऊ वाली उनकी तस्वीर पेश करना नहीं भूले, तो राहुल ने शिवभक्त होने का दावा करते हुए कैलाश मानसरोवर जाने की इच्छा जताई।
इन दिनों राहुल गाँधी नरेंद्र मोदी से उन्हीं की शैली में दो-दो हाथ करने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। वे जनसभा में मोदी का मजाक उड़ाते नजर आते हैं। कई बार उनके अंदाज में मिमिक्री करने की भी कोशिश करते हैं। यह अलग बात है कि कभी-कभी दांव उल्टा भी पड़ा है। उनके कई बयानों को बीजेपी के सोशल मीडिया सेल ने इस तरह पेश किया कि राहुल गाँधी की छबि को नुकसान पहुंचा।
सभी राजनेताओं की अपनी-अपनी शैलियां जग-जाहिर हैं, लेकिन राहुल गाँधी किसी एक दिशा में जाते हुए नजर नहीं आ रहे हैं। वे सबकुछ थोड़ा-थोड़ा आजमा रहे हैं, जो सलाहकार कराए वही अच्छा। अगर प्रधानमंत्री मोदी विशाल रैली और रोड शो के जरिए अपनी राजनीतिक ताकत का इजहार करते हैं तो राहुल गाँधी जनता से सीधे जुड़ने की सलाह सलाहकार दे डालते हैं। पता नही क्यों, एक अच्छे युवक की जबरिया छबि निर्माण की सलाह उन्हें 360 डिग्री घुमा रही है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।