भारत का प्रधानमंत्री बनने की बात करने वाले राहुल गाँधी अपनी बात से पलट गये हैं। वे और उनकी पार्टी अब ये मौका उस किसी को देने को राजी है जो भाजपा के खिलाफ अपनी शख्सियत से इस पद की लड़ाई को जीत सके। कुछ महीने कांग्रेस पार्टी ने अध्यक्ष राहुल गांधी को अगले लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने का फैसला किया था। पार्टी ने यह भी कहा था कि वह विपक्षी पार्टियों के बीच पीएम उम्मीदवार को लेकर आम सहमति बनाने की कोशिश करेगी। अब खुद राहुल गांधी ने संकेत दिए कि अगले लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र में भाजपा और आरएसएस की सरकार बनने से रोकने के लिए कांग्रेस हर मुमकिन और जरूरी कदम उठाएगी और भाजपा और आरएसएस की सरकार या उसके द्वारा समर्थित किसी सरकार को बनने से रोकने वाले को प्रधानमंत्री बनाएगी।
भारत में प्रधानमंत्री बनना अब आसान नहीं। अब कोई करतब दिखा कर देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सकता। भारत में प्रधानमन्त्री का पद भारतीय संघ के शासन प्रमुख का पद है। भारतीय संविधान के अनुसार, प्रधानमन्त्री केंद्र सरकार की मंत्रिपरिषद् का प्रमुख और राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार होता है। वह भारत सरकार की कार्यपालिका का प्रमुख होता है और सरकार के कार्यों के प्रति संसद को जवाबदेह होता है। भारत की संसदीय राजनैतिक प्रणाली में राष्ट्र प्रमुख और शासन प्रमुख के पद को पूर्णतः विभक्त रखा गया है। सैद्धांतिकरूप में संविधान भारत के राष्ट्रपति को देश का राष्ट्रप्रमुख घोषित करता है और शासनतंत्र की सारी शक्तियों को राष्ट्रपति पर निहित करता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 में स्पष्ट रूप से मंत्रिपरिषद की अध्यक्षता तथा संचालन हेतु प्रधानमन्त्री की उपस्थिति को आवश्यक माना गया है। उसकी मृत्यु या पदत्याग की दशा मे समस्त परिषद को पद छोडना पडता है। वह स्वेच्छा से ही मंत्रीपरिषद का गठन करता है। राष्ट्रपति मंत्रिगण की नियुक्ति उसकी सलाह से ही करते हैं। मंत्री गण के विभाग का निर्धारण भी वही करता है। कैबिनेट के कार्य का निर्धारण भी वही करता है। देश के प्रशासन को निर्देश भी वही देता है तथा सभी नीतिगत निर्णय भी वही लेता है।
इतने जिम्मेदार पद के लिए “मैं नही तू सही, तू नहीं तो कोई और सही”। जैसी बातें, पूरी संसदीय प्रणाली का मखौल है। भारत जैसे लोकतंत्र में इस पद की गरिमा के अनुरूप व्यक्ति के सीधे चयन का प्रावधान होता तो शायद इन नामों में से कोई भी अनुकूल नहीं बैठता जो इन दिनों हवा में उछल रहे हैं या उछाले जा रहे है। जो नाम उछले हैं वे अकेले पूरे देश में मान्य हैं? शायद नहीं। इस संसदीय प्रणाली की विशेषता का मखौल बना कर हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं? देश तुनकमिजाज़, भ्रष्ट और अदालती मामलों के निबटारे तक जमानत पर डोल रहे हैं लोगों में से किसी को प्रधानमंत्री बना देगा ? गिरोह के रूप में बदलते जा रहे राजनीतिक दलों को संविधान में झांक लेना चाहिए। भारत में अभी इस पद के अनरूप प्रतिभाएं मौजूद हैं। प्रधानमन्त्री पद बच्चों का खेल नहीं है, इसे तमाशा मत बनाइए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।