ब्रिक्स सम्मेलन का संदेश | EDITORIAL by Rakesh Dubey

प्रधानमंत्री ब्रिक्स सम्म्मेलन से लौट आये हैं। जोहानिसबर्ग में संपन्न हुए ब्रिक्स देशों के दसवें सम्मेलन के पूर्व उन्होंने रवांडा और युगांडा की यात्रा भी की। इन यात्राओं में भारत ने औद्योगिक और डिजिटल तकनीक के इस्तेमाल से नई और बेहतर दुनिया बनाने की जो बात कही है, वह अफ्रीकी देशों के लिए एक बड़ा संदेश है।

तीसरी दुनिया के गरीब देश जिस विकास की बाट जोह रहे हैं, उसका सपना डिजिटल और औद्योगिक तकनीक के बिना पूरा नहीं हो सकता। डिजिटल क्रांति ने विकास और निवेश के जो दरवाजे खोले हैं, उसमें तीसरी दुनिया के देशों को भागीदारी बनाना वक्त की जरूरत है। इसीलिए भारत ने ब्रिक्स के मंच से कृत्रिम बौद्धिकता यानी रोबोट की दुनिया, औद्योगिक तकनीक का विकास, कौशल विकास जैसे पक्षों पर जोर दिया। ब्रिक्स देश आज दुनिया की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था हैं।

भारत, चीन और रूस परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं। रूस और चीन जैसे देश दुनिया की महाशक्ति हैं। दो सदस्य रूस और चीन सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं, जिन्हें वीटो का अधिकार हासिल है। सबसे बड़ी बात यह कि इन पांचों राष्ट्रों के पास विशाल बाजार है। इसलिए ब्रिक्स देशों का यह सम्मेलन आपसी सहयोग के अलावा बड़े बाजार तलाशने की भी कवायद बना रहा।

ब्रिक्स देशों का समूह दुनिया में एक बड़ी ताकत के रूप में उभरा है। इसमें शामिल देश दुनिया की इकतालीस फीसद आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर आर्थिकी के हिसाब से देखें तो इन पांचों देशों की साझा अर्थव्यवस्था चालीस लाख करोड़ डॉलर से भी ज्यादा बैठती है। इन देशों के पास साढ़े चार लाख करोड़ डॉलर का साझा विदेशी मुद्रा भंडार है। यानी ब्रिक्स ऐसे ताकतवर समूह के रूप मौजूद है जो अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के लिए चुनौती पेश कर रहा है। जी-7  जैसे समूह को अपना विस्तार कर जी-20 बनाने की दिशा में सोचना पड़ा। इसलिए ब्रिक्स के मंच से अगर कोई बात दुनिया में पहुंचती है तो उसके अपने निहीतार्थ होते हैं।

भारत के प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स सम्मेलन में जाने से पहले अफ्रीका के दो देशों- रवांडा और युगांडा की यात्रा की। किसी भारतीय प्रधानमंत्री का इन देशों का यह पहला दौरा था। भारत ने रवांडा में जल्द ही भारतीय उच्चायोग खोलने की घोषणा भी की। रवांडा और युगांडा जाकर प्रधानमंत्री ने यह संदेश दिया है कि भारत अफ्रीकी मुल्कों के विकास में हर तरह से सहयोग देने को तैयार है। रवांडा को भारत ने बीस करोड़ डॉलर कर्ज भी दिया और एक रक्षा सहयोग समझौता भी किया। पूर्वी अफ्रीकी देशों के साथ भारत के रिश्ते वक्त की जरूरत हैं।

चीन ने भी तेजी से अफ्रीकी देशों की ओर रुख किया है। अफ्रीकी देश भारत और चीन के लिए बड़ा बाजार और निवेश का ठिकाना तो हैं ही, साथ ही इनका रणनीतिक महत्त्व भी है। चीन पूर्वी अफ्रीकी देशों के साथ मिलकर वहां सैन्य अड्डे बनाने की जुगत में है और इसके जरिए वह हिंद महासागर में पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है। यह भारत के लिए बड़ी चुनौती है। ब्रिक्स में चीन और भारत दोनों के हित हैं। पर दोनों देशों के बीच सीमा विवाद और चीन का पाकिस्तान प्रेम एक बड़ी बाधा है। ऐसे में भारत के लिए यह आसान नहीं है कि वह चीन के साथ ऐसे समूह में रहे भी और उसकी चुनौतियों से भी निपटे।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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