भारत के सर्वोच्च न्यायालय में दो फैसलों में राज्य सरकारों को रास्ता दिखाया है। एक पश्चिम बंगाल सरकार को निर्वाचन के मामले में और दूसरा दिल्ली में सरकार कैसे चले ? मामले में। दोनों ही निर्णय मील के पत्थर है, पर इनका सम्मिलित अर्थ राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में निकालें तो यह साबित होता है कि देश में अब एक नये संविधान की जरूरत है।
पहले पश्चिम बंगाल। पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनाव में 34 प्रतिशत सीटों पर निर्विरोध निर्वाचन पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई है। जस्टिस दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि आकड़ों से यही प्रतीत होता है कि पश्चिम बंगाल में जमीनी स्तर का लोकतंत्र वहां काम नहीं कर रहा है।
जस्टिस एएम खानविल्कर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ वाली इस पीठ ने कहा कि यह परेशान करने वाली बात है कि 48650 ग्राम पंचायत सीटों में से 16 हजार सीटों पर एक के सिवा कोई दूसरा प्रत्याशी मुकाबले में ही नहीं उतरा। वहां इस साल मई में हुए ग्राम पंचायत, जिला परिषद और पंचायत समिति के हिंसायुक्त चुनाव में 58692 सीटों में 20159 सीटों पर मुकाबला ही नहीं हुआ। इनमें संवेदनशील माने जा रहे बीरभूम, बांकुरा और मुर्शीदाबाद जैसे जिले भी शामिल हैं। चुनाव में ग्राम पंचायत की 48650 सीटों के अलावा जिला परिषद की 852 और पंचायत समिति सदस्य की 9217 सीटें थीं। ऐसे 34 प्रतिशत निर्विरोध निर्वाचन क्या प्रश्नचिंह नहीं है ?
अब दिल्ली: दिल्ली का बॉस कौन होगा इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ जाने के बाद दिल्ली सरकार इसे अपने लिए बड़ी जीत मान रही है। वहीं विपक्ष इसे केजरीवाल सरकार की करारी हार मान रहा है। इस फैसले के आने के बाद पक्ष-विपक्ष सभी की। प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सब अपने माफिक अर्थ लगा रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ट्वीट कर इसे दिल्ली की जनता की बड़ी जीत बताया है। उन्होंने लिखा- दिल्ली की जनता की बड़ी जीत...लोकतंत्र की भी बड़ी जीत। वहीँ आप के बागी नेता कपिल मिश्रा ने भी इस फैसले के बाद ट्वीट किया और कहा कि, सबकुछ फिर से वही हो गया। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता। एलजी शासक हैं। 239 एए के अनुसार कैबिनेट से लेनी होगी सलाह।सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है वो बेहद स्पष्ट है। संविधान के आर्टिकल 239 (एए) के मुताबिक दिल्ली एक राज्य नहीं है, यह एक केंद्र शासित राज्य है। अगर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल अगर साथ मिलकर काम नहीं करेंगे तो दिल्ली में परेशानियां आएंगी।
इन दोनों ही फैसलों के मूल में संविधान है। अब समय आ गया है, संविधान ऐसे मसलों में सही मार्गदर्शन दे और इसके लिए उसका अध्यतन होना जरूरी है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।