राष्ट्रहित की बात करने वाली भाजपा और कांग्रेस एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर चुप है। चुनाव को कम खर्चीला बनाने की हमेशा वकालत करने वाली वामपंथी पार्टियाँ एक साथ चुनाव के विरोध में हैं। राजनीति के खेल निराले हैं। केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' का नारा देकर नई बहस को जन्म तो दे दिया। अब उसकी चुप्पी, नये सवाल खड़े कर रही है। इससे यह अर्थ निकलता है कि पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं, इस मुद्दे पर तमाम राजनीतिक दल बंटे हुए हैं और अभी तक इस विषय पर सहमति नहीं बन सकी है। देश के सिर्फ 4 राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन किया तो नौ दल इसके खिलाफ खड़े हैं।
विधि आयोग ने दो महीने पहले इस विचार को लेकर प्रश्नावली जारी की थी। इस प्रश्नावली के जरिए आयोग ने आम जनता, संस्थान, एनजीओ और नागरिक संगठनों के साथ सभी स्टेकहोल्डर से सुझाव मांगे थे। इस बैठक के बाद चुनाव आयोग के साथ बैठक कर विधि आयोग ने तकनीकी और संवैधानिक उपायों की बारीकियों पर चर्चा की थी। इसके बाद विधि आयोग ने इस विषय पर चर्चा के लिए परामर्श प्रक्रिया की एक बैठक भी बुलाई लेकिन इसमें दोनों मुख्य दल बीजेपी और कांग्रेस ने हिस्सा ही नहीं लिया। एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर दो दिवसीय कार्यक्रम के अंत में एनडीए के सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के अलावा, ए आई डी एम् के , सपा और टीआरएस ने ही इस विचार का समर्थन किया। आयोग ने इस मुद्दे पर विचार रखने के लिए सभी 7 राष्ट्रीय और 59 क्षेत्रीय दलों को आमंत्रित किया था।
भाजपा के सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल ने समर्थन तो दूसरे समर्थक दल गोवा फारवर्ड पार्टी ने इस विचार का विरोध किया, वहीं तृणमूल कांग्रेस, आप , डीएमके, टीडीपी, सीपीआई, सीपीएम, फॉरवर्ड ब्लॉक और जेडीएस ने भी इसका विरोध किया. सपा, टीआरएस, आप , डीएमके, टीडीपी, जेडीएस और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने विधि आयोग से अलग से भेंट कर इस मुद्दे पर अपने विचार और इसके लाभ हानि गिनाये।
एक तीर से दो निशाने की तर्ज़ पर समाजवादी पार्टी की ओर से राम गोपाल यादव ने इस विचार का समर्थन किया। उन्होंने साफ किया कि पहला एक साथ चुनाव 2019 में होना चाहिए जब 16वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होगा। इसके पीछे उनकी मंशा थी अगर 2019 में एक साथ चुनाव कराए जाते हैं तो उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की अर्थात भाजपा की सरकार का कार्यकाल कम हो जायेगा और समाजवादियों अपनी जमीन वापिसी में मदद मिलेगी।
आम आदमी ने विधि आयोग से कहा कि एक साथ चुनाव लोगों को एक सरकार बनाने से दूर रखने की एक चाल है क्योंकि दोनों चुनाव साथ हुए तो सदनों का कार्यकाल बढ़ाया जाएगा। तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव ने विधि आयोग को दिये एक लिखित जवाब में कहा कि उनकी पार्टी देश में एकसाथ चुनाव कराये जाने का समर्थन करती है।टीआरएस ने तो यहाँ तक कहा कि यह विश्लेषण गलत है कि अगर एकसाथ चुनाव हुए तो स्थानीय मुद्दों पर राष्ट्रीय मुद्दे भारी पड़ेंगे।
चुनाव को सरल और कम खर्चीला बनाने की वकालत करने वाली सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने आयोग को पत्र लिखकर प्रस्ताव पर अपनी पार्टी की आपत्ति दर्ज कराई है, जिस पर आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है। अब प्रश्न राष्ट्र हित का है ? राजनीतिक पार्टियाँ इस शब्द के प्रयोग में भी राजनीति बरतती है। जैसे दोनों चुनाव एक साथ का नारा देने वाली भाजपा की चुप्पी। एक साथ चुनाव राष्ट्रहित में हैं। धन और समय दोनों की बचत ही तो राष्ट्र हित है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।