BHOPAL: जीएसटी [GOOD SERVICE TAX] की मार के चलते तथा अन्य राज्यों में बिक्री बंद होने कारण सांची दुग्ध संघ में 300 करोड़ से ज्यादा के दुग्ध उत्पादों का स्टॉक जमा हो चुका है। यही हालात रहे तो प्रदेश के लगभग 2.56 किसानों से रोजाना 14 लाख लीटर तक खरीदी करने वाले सांची दुग्ध संघ को दूध खरीदने से हाथ खींचना पड़ेगा। इसका खामियाजा उत्पादक किसानों के साथ-साथ आम जनता को भी भुगतना पड़ेगा। फिलहाल सांची को मक्खन, दूध पाउडर और घी के बाजार मूल्य कम होने और उत्पादन लागत के कारण 70 से 90 रुपए प्रति किलो तक का घाटा उठाना पड़ रहा है।
निजी क्षेत्र के डेयरी संचालक गाय के दूध की खरीदी बंद कर, थोड़ी मिलावट और जीएसटी बचाकर घाटे की भरपाई कर रहे हैं, लेकिन माल की बिक्री न होने के कारण सरकारी नियंत्रण वाले सांची दुग्ध संघ में पूरे प्रदेश में जमा लगभग 5500 टन मक्खन और 6000 टन दूध पाउडर के स्टॉक ने संघ की रीढ़ तोड़ कर रख दी है। दुग्ध संघ इंदौर में ही लगभग 4700 टन मक्खन और दूध पाउडर के स्टाक में करोड़ों की पूंजी फंसी है।
देश में दुग्ध उत्पादन में तीसरे नंबर वाले मध्यप्रदेश के इंदौर, भोपाल के सांची और ग्वालियर, जबलपुर के दुग्ध संघों में पीक सीजन में 14 लाख लीटर प्रतिदिन तक की खरीदी होती है, जबकि खपत लगभग 8 लाख लीटर की ही है। दुग्ध संघ रोजाना बचने वाले 4 से 7 लाख लीटर दूध को मक्खन, दूध पाउडर में बदल रहा है। मिलावटखोरों और आयातित माल के सामने प्रतिस्पर्धा न कर पाने से इंदौर दुग्ध संघ में ही 2300 टन दूध पाउडर और लगभग 2400 टन मक्खन का स्टॉक जमा हो गया है। इसमें संघ का 300 करोड़ से ज्यादा पैसा उलझ गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि बिना सरकारी मदद के यह संघ कब तक टिक पाएंगे।
मक्खन की लागत 300, मूल्य 220 रुपए प्रति किलो तक आ रही है औसत उत्पादन लागत मक्खन की दुग्ध संघ में, जबकि बाजार में 220-30 रुपए में भी खरीदार नहीं मिल रहे। 225 रुपए प्रति किलो है पावडर की उत्पादन लागत, लेकिन बाजार भाव 140-50 के आसपास है। यानी हर किलो पर तकरीबन 90 रुपए का नुकसान है। घी के भाव बाजार के दबाव को देखते हुए 500 से घटाकर ₹450 से ₹400 करने पड़े हैं ।
जीएसटी में नहीं मिली राहत
पहले घी व मक्खन पर महज 5% टैक्स लगता था। जीएसटी लागू होने पर इसे 12% कर दिया गया। टैक्स के चलते कीमतों पर 40 से 50 रुपए का अतिरिक्त भार आ गया। आयातित घी सस्ता पड़ने के कारण संघ प्रतिस्पर्धा से बाहर है। डेयरी उद्योग के संकट को देखते हुए जीएसटी काउंसिल से राहत की उम्मीद थी, लेकिन काउंसिल ने सिर्फ फोर्टिफाइड मिल्क में ही टैक्स दरों में कमी की है।
जीएसटी से बढ़े दूध उत्पादों के भाव, राहत नहीं
सांची दूध संघ इंदौर के जीएम एन द्विवेदी के मुताबिक, सिर्फ अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव कम होना ही कारण नहीं है, जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स की दर बढ़कर 12% हो गई थी। इससे मिल्क प्रोडक्ट 30 से 50 रुपए प्रति किलो तक महंगा हो गया। हमारी बिक्री पर असर पड़ा। डेयरी उद्योग पर संकट के चलते उम्मीद थी कि टैक्स कम किया जाएगा, पर ऐसा हुआ नहीं। दूसरा निजी क्षेत्रों में मिलावटी घी पर लगाम नहीं लग पाने से भी हम प्रतिस्पर्धा से बाहर हो रहे हैं।
इंपोर्ट ड्यूटी कम होने से दिक्कत
पिछले दो साल से अंतरराष्ट्रीय बाजार में आई गिरावट के चलते मक्खन या बटर आॅइल (घी) का आयात सस्ता पड़ने लगा है। दूध पाउडर की ही बात करें तो यह बाजार में 130-40 रुपए किलो में आसानी से उपलब्ध है। अभी मिल्क प्रोडक्ट पर बेसिक इंपोर्ट ड्यूटी 60 रुपए प्रति किलो है। सरकार इसमें वृद्धि करे तो आयात पर थोड़ा नियंत्रण लगेगा और घरेलू उत्पादन की खपत बढ़ सकती है।
एक्सपोर्ट में इंसेंटिव नहीं
गुजरात को छोड़ अभी तक किसी भी राज्य ने को-ऑपरेटिव सेक्टर के दुग्ध संघों को उनका स्टॉक निकालने के लिए एक्सपोर्ट में कोई सब्सिडी नहीं दी है। गुजरात 50 रुपए प्रति किलो की सब्सिडी दे रहा है। इससे 6 हजार टन का स्टॉक कम कर फंसी पूंजी निकालने में मदद मिली है, पर सांची मुख्य खरीदार खाड़ी देशों और रूस को निर्यात करने में प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गया है।
2.5 लाख किसान जुड़े हैं दुग्ध संघों से,
14 लाख लीटर प्रतिदिन तक हुई है खरीदी,
08 लाख लीटर दूध रोजाना बिकता है,
04 से 6 लाख लीटर दूध बच जाता है रोजाना
निजी डेयरियों में खरीदी नहीं
मध्यप्रदेश में लगभग 196 लाख गाय और 80 लाख भैंस हैं। निजी दूध की डेयरी कंपनियों और संचालकों ने कम फैट वाले गाय की दूध की खरीदी और भाव बहुत कम कर दिए हैं। मदर डेयरी दिल्ली, अमूल गुजरात, महाराष्ट्र जैसे दूसरे राज्यों ने भी मप्र से दूध खरीदना बंद कर दिया है। इन सब कारणों के चलते उत्पादक किसान सांची के दुग्ध संघों का रुख कर रहे हैं।