GST से सरकारी खजाना ही भरा | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
कल 30 जून को जीएसटी को लागू हुए एक साल पूरा गया है। अब तक जीएसटी आदर्श कर व्यवस्था नहीं बन पाई है। लागू होने के एक साल बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इससे सरकार का खजाना भरा? आंकड़े बताते हैं कि इससे सरकार को काफी पैसे मिले। वित्त वर्ष 2016-17 में कुल इनडायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 8.63 लाख करोड़ रुपए मिलते थे। वहीं जीएसटी लागू होने के 11 महीनों यानी जुलाई 2017 से मई 2018 के बीच कुल टैक्स कलेक्शन 10.06 लाख करोड़ रुपए हुए। अभी जून 2018 के आंकड़े आने बाकी हैं। ये आंकड़े इसलिए भी सरकार को खुश करने वाले हैं, क्योंकि पेट्रोलियम उत्पादों, शराब, तंबाकू और मनोरंजन जीएसटी से बाहर हैं।

विश्व बैंक सहित सभी का मानना है कि भारत की टैक्स की पट्टियों की संख्या ही सबसे बड़ी नहीं है, बल्कि 28 प्रतिशत कर के कारण एशिया में जीएसटी की सबसे ऊंची और दुनिया में चिली के बाद दूसरी सबसे ऊंची दर है। इस नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के लागू होने के तुरंत बाद नीति आयोग के सदस्य और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाह परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबराय ने कहा था कि "भारत आदर्श जीएसटी व्यवस्था से काफी दूर है और यह निकट भविष्य में आदर्श नहीं बन पाएगा."सभी मदों पर जीएसटी की अधिकतम तीन दरों के पक्षधर देबराय ने कहा कि सात दरों से शुरू करके भारत को ऐसी स्थिति में ला दिया है कि आदर्श जीएसटी नहीं बन सकता है। जीएसटी की एक साल की यात्रा भी सुगम नहीं रही और पहले ही दिन से इसमें गड़बड़ी व समस्याएं बनी रहीं। हालांकि सरकार की सक्रियता के कारण कतिपय खामियों का समाधान किया गया, फिर भी रिटर्न दाखिल करने की समस्या ज्यों की त्यों है।

कई अर्थशास्त्रियों का तर्क कि आदर्श जीएसटी व्यवस्था में सार्वभौमिक कवरेज और और एकल कर प्रणाली होनी चाहिए। जबकि अधिकांश लोग इस बात से भी सहमत होंगे कि भारत जैसे बड़ी आर्थिक असमानता वाले देश के लिए यह व्यावहारिक नहीं है। सरकार भी अक्सर कहती रही है कि बीएमडब्ल्यू कार और हवाई चप्पल पर एक समान कर की दर नहीं होनी चाहिए|जीएसटी में कर की छह दरें क्रमश: 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत रखी गई हैं। इसके अलावा कुछ मदों पर कर की दर शून्य है तो सोने पर तीन फीसदी कर लगाया गया है। इस तरह भारत की यह कर प्रणाली दुनिया में सबसे जटिल है। जीएसटी लागू करने को लेकर जो आशंका थी, वह तब सच साबित हुई जब जीएसटी संग्रह सितंबर के 92000 (बाद में संशोधित आंकड़ा 95132) करोड़ रुपये से घटकर अक्टूबर में 83346 (बाद में संशोधित आंकड़ा 85931) करोड़ रुपये और नवंबर में 80808 (बाद में संशोधित आंकड़ा 83176 करोड़) रुपये रह गया। सरकार अभी इसे और सरल करे और कर की दर समान करे तो कुछ चमत्कार दिख सकता है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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