INDEX COLLEGE: कालाधन थी स्टूडेंट्स की फीस, इस ट्रिक से की सफेद | INDORE NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। क्या किसी कॉलेज के लिए स्टूडेंट्स की फीस कालाधन हो सकती है। क्या कॉलेज फीस के नाम पर स्टूडेंट्स से निर्धारित मापदंड से ज्यादा रकम वसूल करते हैं और शेष रकम कालाधन होती है। इंडेक्स मेडीकल कॉलेज के मामले में इसी तरह का खुलासा जा रहा है। आयकर विभाग की जांच में सामने आया है कि इंडेक्स कॉलेज के संचालक सुरेश के. भदौरिया ने स्टूडेंट्स द्वारा नगद जमा की गई 20 करोड़ रुपए की फीस को एक ट्रस्ट में दिया गया दान बताया और इस तरह कालेधन को सफेद किया। 

आयकर विभाग ने अपनी जांच में पाया है कि इंडेक्स कॉलेज के स्टूडेंट्स से फीस के नाम पर 20 करोड़ रुपए नगद वसूले गए। ये सारी रकम भदौरिया के एक ट्रस्ट में दान बताई गई। दानदाता भी स्टूडेंट्स नहीं थे बल्कि 40 हजार ऐसे लोग थे जिनका या तो दुनिया में कोई अस्तित्व ही नहीं है या फिर वो इंडेक्स कॉलेज के अस्पताल में इलाज कराने आए थे। दानदाताओं की सूची में ज्यादातर दानदाता इंदौर, देवास, आष्टा, सीहोर और भोपाल जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से थे। इसे और जटिल बनाने के लिए कई गांव से एक ही दानदाता का नाम बताया गया। 

100 करोड़ रुपए का कालाधन सफेद किया
आयकर विभाग ने शंका के आधार पर 2016 में जांच शुरू की थी, जो ग्रुप पर छापे पड़ने के पहले तक चलती रही। इस दौरान भदौरिया ने देवास में भी एक मेडिकल कॉलेज शुरू कर दिया। इसमें निवेश के लिए उसने हर साल 20 करोड़ रुपए का डोनेशन इन दानदाताओं से मिलना बताया था। विभाग को आंशका है कि 10 साल की अवधि में भदौरिया ने करीब 100 करोड़ रुपए की छूट इन ट्रस्ट के जरिए ली। इसी जांच के निष्कर्ष के बाद ही आयकर विभाग ने मार्च में भदौरिया के ठिकानों पर छापे मारे थे। यह जांच आयकर विभाग की सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है। 

आयकर विभाग को मिसगाइड करता रहा भदौरिया
दो साल पहले सुरेश के. भदौरिया ने अपने ट्रस्ट के रिटर्न में 20 करोड़ रुपए का दान मिलना बताया था। विभाग को गफलत में डालने के लिए उसने 40 हजार दानदाताओं की लिस्ट भी सौंपी थी। दानदाताओं के गांव और शहर अलग-अलग थे। कई नाम तो ऐसे थे जो एक शहर या गांव में एक ही थे। विभाग ने इन दानदाताओं की और डिटेल देने को कहा- जैसे, दानदाताओं ने पैसा कैसे दिया बैंक से या चेक से? उनसे दान लेते वक्त उनका कोई पहचान पत्र लिया गया या नहीं? इन सवालों के जवाब में भदौरिया ने कुछ ही लोगों की जानकारी दी थी। जब विभाग का दवाब बढ़ा तो सारे दानदाताओं से दान नकद में मिलना बताया। 

3000 लोगों को समन भेजे, 2900 वापस आ गए
प्रारंभिक जांच में सूची में दर्ज नाम शंका के घेरे में थे। इसके बाद विभाग ने रजिस्टर्ड डाक से 3,000 लोगों को समन भेजे।, लेकिन करीब 2900 पत्र वापस आ गए, क्योंकि उन पतों पर वह व्यक्ति मिला ही नहीं। सभी में एक ही रिमार्क था, पता गलत है। 

100 लोगों ने बताया कि उन्होंने कोई दान नहीं दिया
जिन 100 लोगों के पते सही थे, वे आयकर विभाग के दफ्तर पहुंचे और सबने एक ही बात कही कि उन्होंने एक रुपया भी भदौरिया के ट्रस्ट को दान नहीं दिया है। कुछ ने तो यह कहा कि वे केवल वहां इलाज कराने गए थे। इसके बाद विभाग ने सूची में शामिल 100 अलग-अलग गांव के लोगों की सूची बनाई और जांच के लिए अधिकारी वहां पहुंचे तो खुलासे और दिलचस्प थे। जिस दानदाता को देवास जिले के बागली का रहने वाला बताया गया, उस नाम या सरनेम का व्यक्ति ही पूरे गांव में कोई नहीं था। कुछ मामलों में गांव के सरपंच ने बताया कि जिस जोशी की आप तलाश कर रहे हैं, वह तो छोड़िए इस पूरे गांव में कोई ब्राह्मण ही नहीं रहता है। यह तो कास्तकारों का गांव है। सूची में कुछ ऐसे आदिवासी गांव भी हैं, जहां के किसी ठाकुर दानदाता से दान मिलने के प्रमाण भदौरिया ने विभाग को दिए थे। इस जांच से विभाग पूरी तरह से आश्वस्त हो गया कि यह पूरी सूची ही फर्जी है। इसके बाद यह भी पाया गया कि भदौरिया ने पिछले 10 साल में हर साल इसी तरह के दान मिलना बताए थे। 

कैश में मिली फीस को सफेद करना था मकसद 
आयकर विभाग के जानकार कहते हैं कि आमतौर पर ज्यादातर ट्रस्ट अपने रिटर्न में घाटा होना शो करते हैं, लेकिन सुरेश भदौरिया को इंडेक्स के बाद देवास में दूसरा मेडिकल कॉलेज अमलतास का काम शुरू करना था। इसके लिए उन्हें अनाप-शनाप कैपिटेशन फीस के नाम पर कैश में मिले धन को सफेद करना था। इसलिए उन्होंने यह गड़बड़ी करना शुरू की। नतीजतन वे आयकर विभाग की नजरों में चढ़ गए। 
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