BHOPAL: मध्य प्रदेश के कई आईएएस अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर नहीं जा पाएंगे। इनमें कुछ अफसर ऐसे हैं, जिन्होंने इम्पेनलमेंट (सूचीबद्ध) होने के बाद भी प्रतिनियुक्ति पर नहीं जाने का फैसला किया तो कुछ केंद्र सरकार के पैमाने पर खरे नहीं उतरे। अब केंद्र सरकार ने चयन के मापदंड को बेहद सख्त बना दिया है। इसमें वे अधिकारी जो कभी केंद्र में संयुक्त सचिव नहीं रहे, उन्हें आगे मौका नहीं मिलेगा। दायरे में प्रदेश के 7 अपर मुख्य सचिव आ रहे हैं। वहीं, कनिष्ठ अधिकारियों के सूचीबद्ध हो जाने से कुछ प्रमुख सचिव अब दौड़ से ही बाहर हो गए हैं।
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक अब केंद्र सरकार में किसी भी अधिकारी का इम्पेनलमेंट आसान नहीं रहा। वरिष्ठ अधिकारियों से फीडबैक लेने के अलावा उनके साथ काम करने वाले पूर्व अफसरों से भी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के बारे में पड़ताल कराई जाती है। वहीं, कुछ अफसर ऐसे भी हैं जो चयन होने के बाद केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर नहीं जाना चाहते हैं या सरकार रोक लेती है।
प्रदेश के सात अपर मुख्य सचिव और लगभग 12 प्रमुख सचिव ऐसे हैं जो अपने सेवाकाल में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर कभी नहीं गए। इनमें अपर मुख्य सचिव रजनीश वैश, एपी श्रीवास्तव, विनोद सेमवाल, केके सिंह, सलीना सिंह, मनोज श्रीवास्तव और शिखा दुबे शामिल हैं। वहीं, प्रमुख सचिव में एम मोहनराव, वीरा राणा, मोहम्मद सुलेमान, विनोद कुमार, जेएन कंसोटिया, डॉ.राजेश राजौरा, एसएन मिश्रा, अजीत केसरी सहित कुछ अन्य अधिकारी भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर नहीं गए। इनमें से कुछ अधिकारियों का तो इम्पेनलमेंट भी संयुक्त सचिव पद के लिए हो गया था। वहीं, जब कनिष्ठ अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति के लिए चुन लिया गया है तो इम्पेनलमेंट से वंचित अधिकारियों के रास्ते बंद हो गए हैं।
प्रमोटी अफसरों को नहीं मिलते मौके
नियमों में तो केंद्र सरकार प्रतिनियुक्ति के लिए सीधी भर्ती या पदोन्नति (प्रमोटी) से आईएएस बनने वाले अफसरों में कोई भेदभाव नहीं करती है पर व्यावहारिक तौर पर अंतर साफ नजर आता है। ज्यादातर प्रमोटी अफसरों को केंद्र में सेवा देने का मौका ही नहीं मिला। इसमें एमके वार्ष्णेय से लेकर मौजूदा प्रमुख सचिव अरुण पांडे शामिल हैं। वहीं, सेवानिवृत्ति से पहले वीएस निरंजन का चयन जरूर संयुक्त सचिव पद के लिए हुआ था पर वे जा नहीं पाए।
प्रदेश में मिलते हैं ज्यादा मौके और सुविधा
पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा का मानना है कि अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहिए। इससे दृष्टिकोण व्यापक होता है और सोचने के ढंग पर असर भी पड़ता है। कार्य कुशलता भी बढ़ती है लेकिन कई बार अधिकारी इम्पेनलमेंट होने के बाद भी नहीं जाना चाहते हैं। यह बात भी सही है कि प्रदेश में अफसरों को ज्यादा मौके और सुविधाएं मिलती हैं। पदोन्नति के अवसर अधिक रहते हैं। पहले भी इम्पेनलमेंट कठिन था और अब भी। अब तो 360 डिग्री का फार्मूला अख्तियार किया गया है। इसमें अधिकारी को सूचीबद्ध करने से पहले पूरी पड़ताल होती है। यही वजह है कि एक ही बैच के कुछ अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए चुन लिया जाता है और कुछ रह जाते हैं।