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कमलनाथ ने कहा कि वार्डों के आरक्षण की अधिसूचना का प्रकाशन राजपत्र में न होने के कारण चुनाव स्थगित करने के आदेश निर्वाचन आयोग को दिये गये हैं। जबकि आरक्षण की कार्यवाही कलेक्टरों द्वारा समय पर पूरी कर शासन को आगामी कार्यवाही के लिये दस्तावेज भेज दिये थे। इसे राजपत्र में प्रकाशन की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है न कि कलेक्टर की। यदि कलेक्टर की गलती थी तो अनूपपुर, रायसेन, शिवपुरी, बैतूल और सीधी के कलेक्टर के विरूद्व लापरवाहीपूर्ण कृत्य कर लोकतंत्र की हत्या करने के जुर्म में निलंबित करने जैसी अनुशासनात्मक कार्यवाही क्यों नहीं की गयी। राज्य निर्वाचन आयोग ने जिस नियम 23 और सहपठित नियम 11 (क) का प्रयोग करते हुए चुनाव स्थगित किये। उसमें चुनावों का समय बढ़ाने का प्रावधान है न कि चुनावों को स्थगित करने का।
कमलनाथ ने कहा कि इस पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट है कि करारी हार के डर से भाजपा सरकार चुनाव से भाग रही है। उसे इस बात का अहसास है कि परिस्थितियां विपरीत हैं और जनता झूठे वायदों से भारी नाराज है। यदि चुनाव हार गये तो जनता में गलत संदेश जायेगा। उन्होंने कहा कि भाजपा का अंतर्कलह अब सड़क पर आ गया है। मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को जनता विकास यात्राओं और कार्यक्रमों से लगातार भगा रही है। वह घोषणाओं का हिसाब मांग रही है। विधायक, पार्षद सरेआम एक-दूसरे से उलझ रहे हैं। जिला पंचायत के वरिष्ठ निर्वाचित पदाधिकारी एक-दूसरे को पोल-खोलने की धमकी दे रहे हैं। यह बौखलाहट हार के लक्षण हैं।
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