नई दिल्ली। देश अटल बिहारी वाजपेयी को याद कर रहे हैं। दरअसल, देश लोकतंत्र को याद कर रहा है। जिस पर इन दिनों भीड़तंत्र हावी हो गया है। देश राजधर्म को याद कर रहा है जिस पर अब मनमानी हावी हो गई है। देश उस हिंदुत्व को याद कर रहा है जिसे अटलजी ने परिभाषित किया था परंतु जो अब मॉब लिंचिंग का प्रोत्साहक बनता जा रहा है।
अटलजी ने एक बार पुणे में भाषण देते हुए हिंदुत्व के बारे कहा था- "मैं हिन्दू हूं, ये मैं कैसे भूल सकता हूं? किसी को भूलना भी नहीं चाहिए। मेरा हिंदुत्व सीमित नहीं हैं। संकुचित नहीं हैं मेरा हिंदुत्व हरिजन के लिए मंदिर के दरवाजे बंद नहीं कर सकता है। मेरा हिन्दुत्त्व अंतरजातीय, अंतरप्रांतीय और अंतरराष्ट्रीय विवाहों का विरोध नहीं करता है। हिंदुत्व सचमुच बहुत विशाल है।"
हिन्दू धर्म पर एक निबंध में उन्होंने लिखा, "हिन्दू धर्म के प्रति मेरे आकर्षण का मुख्य कारण है कि यह मानव का सर्वोत्कृष्ट धर्म है। हिंदू धर्म न तो किसी एक पुस्तक से जुड़ा है और न ही किसी एक धर्म प्रवर्तक से जुड़ा है, जो कालगति के संग असंगत हो जाते हैं। हिन्दू धर्म का स्वरूप हिन्दू समाज द्वारा निर्मित होता है और यही कारण है कि यह धर्म युग-युगांतर से संवर्धित और पुष्पित होता जा रहा है।"
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