मुंबई। महाराष्ट्र राज्य के 17 लाख सरकारी कर्मचारी मंगलवार से तीन दिनों की हड़ताल पर चले गए हैं। हालांकि अधिकारियों की संस्था ने हड़ताल वापस लेकर सरकार को कुछ राहत दी है। तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हड़ताल पर चले गएा हैं। इस हड़ताल का असर सरकारी कामकाज पर पड़ेगा। हड़ताल पर जाने से रोकने लिए सरकार देर रात तक कर्मचारियों को मनाने में लगी रही। राज्य के शिक्षकों ने भी हड़ताल का समर्थन किया है। इससे पहले शनिवार को राजपत्रित अधिकारी महासंघ के साथ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बैठक की थी, जो बे-नतीजा रही।
ये हैं कर्मचारियों की मांगे
मंत्रालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में समन्वय समिति के अध्यक्ष मिलिंद देशमुख और अविनाश दौंड ने दावा किया कि मंत्रालय कर्मचारी, जिला परिषद, नगरपालिका कर्मचारी, शिक्षक-शिक्षकेतर कर्मचारी हड़ताल में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिश लागू करने, खाली पद भरने, सप्ताह में दो दिन अवकाश देने तथा सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष करने जैसी महत्वपूर्ण मांगों को लेकर यह हड़ताल की जा रही है।
मुख्यमंत्री बस कहते रहते हैं 'सरकार सकारात्मक है'
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हमेशा कहते हैं कि सरकार सकारात्मक है, लेकिन उनकी सकारात्मकता दिखाई नहीं दे रही है। नागपुर के मॉनसून सत्र में वित्तमंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने दिवाली के मौके पर सातवां वेतन आयोग लागू करने की घोषणा की थी। अब मुख्यमंत्री जनवरी 2019 कह रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से हमारी मांगों को लेकर बार-बार आश्वासन दिया गया, लेकिन आश्वासन पूरा नहीं किया गया। इस हड़ताल की पूरी जिम्मेदारी सरकार की है। अब हमारे कर्मचारियों के सब्र का बांध टूट रहा है।
भर्ती नहीं करने से काम का दवाब बढ़ रहा है
हमें लगता है कि सरकार सातवां वेतन आयोग लागू करने में टालमटोल कर रही है। इसी सरकार ने साल 2014 में सातवां वेतन आयोग लागू करने का आश्वासन दिया था। इसके लिए केपी बक्षी समित गठित की गई थी, लेकिन इस समिति का गठन हुए तकरीबन डेढ़ साल बीत गया है, लेकिन अभी तक इसका काम आगे नहीं बढ़ पाया है। कर्मचारियों की भर्ती नहीं किए जाने से काम कर रहे वर्तमान कर्मचारियों पर काम का दबाव काफी बढ़ गया है। ऐसे में हड़ताल पर जाने का निर्णय लेना पड़ा।
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अधिकारियों और कर्मचारियों की मांगों को लेकर सरकार सकारात्मक है। आयोग में कई अधिकारी और कर्मचारियों के वेतन में त्रुटियां हैं, जिनकी सुनवाई के लिए बक्षी समिति का गठन किया गया। समिति का काम अपने अंतिम चरण में है।
देवेंद्र फडणवीस, मुख्यमंत्री
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