इंदौर। ये मामले कभी मुद्दे नहीं बनते। इन विषयों पर कभी मॉब लिंचिंग नहीं होती। यहां तक कि इन पर कभी कोई चर्चा ही नहीं होती। कोई सवाल नहीं किया जाता। सबकुछ धड़ल्ले से चलता है और लोग मरते रहते हैं। कभी कोई पत्रकार आवाज उठाता है। गलती सुधार दी जाती है। फिर दूसरी जगह वही गलती दोहराई जाती है और फिर शुरू हो जाते हैं हादसे। एक अदद इंजीनियर की गलती के कारण 8 माह में 185 रोड एक्सीडेंट हुए, इसमें 48 की मौतें हुईं और 276 लोग घायल हो गए। क्या इस इंजीनियर से कोई सवाल किया जाएगा।
बुरहानपुर में शिकारपुरा थाने के आसपास हाईवे मार्ग की सड़क चार इंच ऊंची है। इसके आसपास कीचड़ और गिट्टी का चूरा पड़ा रहता है। यहां पर इसी साल 6 मई को बाइक सवार सीआईएसएफ (केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षाबल) के जवान ईश्वर पिता पंढरी गावंड़े (25) की मुरम से बाइक फिसलने के कारण कंटेनर में दबने से मौत हो गई थी। इसी जगह से कुछ ही दूरी पर रविवार-सोमवार की रात 3 बजे आरपीएफ आरक्षक जितेंद्र सेन (30) निवासी खंडवा को कंटेनर ने टक्कर मारी जिससे उसकी मौत हो गई। इसी दुर्घटना के सात घंटे पहले नवलसिंह पेट्रोलपंप के पास कंटेनर तीन युवकों को रौंदते हुए चला गया, जो कि दूसरे दिन भी नहीं पकड़ाया। हाईवे पर हादसों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।
रोज कोई न कोई यहां पर मरता है या फिर वह दुर्घटना में हमेशा के लिए अपाहिज हो जाता है। एक ही तरह के हादसे होने पर भास्कर टीम ने ताप्ती पुल से उतावली नदी के पुल तक मामले की पड़ताल की इस दौरान एक ही एमपी रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा हाईवे पर डामरीकरण कराने के बाद सड़क पर छोड़ी गई बारीक गिट्टी की चूरी से वाहन फिसलना और साइड पट्टी अधूरी पड़ी होना सामने आया। हाईवे पर सड़क और जमीन के बीच की 4 से 6 इंच तक का फर्क आ गया है। दुर्घटनाओं का यह प्रमुख कारण सामने आ रहा है। हाईवे के इस हिस्से में कहीं भी साइड पट्टी नहीं बनी है।
ब्रेकर भी आधी सड़क पर बने हैं, जिसकी ऊंचाई भी आधे फीट से ज्यादा की है। ब्रेकर पर पहचान के लिए सफेद रंग से कोई निशान नहीं बना है। डामर की सड़क पर बिना निशान के ब्रेकर नजर नहीं आता है। इससे कई चालक ब्रेकर अचानक आने से डर जाते हैं। वहीं सड़क व जमीन की ऊंचाई ज्यादा होने से वाहन चालक अकसर इस पर से गिर जाते हैं।
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