नई दिल्ली। भारत सरकार के विधि आयोग ने सिफारिश की है कि ऐसी दशा में ना केवल स्पेशल कोर्ट बनाकर ऐसे मामलों में फौरन सुनवाई कर फैसला दे। इसमें कोई दिक्कत हो तो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का भी प्रावधान हो। आयोग की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि मुआवजा तय करने और भुगतान करने का नियम सरल और पारदर्शी हो, क्योंकि किसी को भी गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखना बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन है और ये तभी मुमकिन होता है जब अभियोजन और जांच एजेंसियां अपने काम में लापरवाही या मनमाना रवैया अपनाती हैं।
मुलजिम दोषमुक्त हुआ तो उसे मुआवजा भी दिया जाना चाहिए
विधि आयोग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में उन लोगों के लिए मुआवजे की सिफारिश की है, जिनको पुलिस या जांच एजेंसी मनमाने तरीके से फंसाकर वर्षों जेल में सड़ा देती है। सालों बाद अदालत गवाहों के बयानात और सबूतों की रोशनी में इस नतीजे पर पहुंचती है कि मुलजिम पर जुर्म साबित नहीं हो पाया। अदालत मुलजिम को बरी कर देती है। इसका मतलब ये कि मुलजिम अपनी दुनिया में लौट जाए लेकिन दरअसल अपनी दुनिया में लौटने के बाद भी उसकी दुनिया लुट जाती है।
शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना, इज्जत का कबाड़ा, पीछे से परिवार का दुर्दशा, संपत्ति का नुकसान जैसी चीजें उसे दुनिया में सिर उठाकर जीने नहीं देती। ऐसे में वो चाहकर भी अपनी पिछले जीवन, पिछली दुनिया में नहीं लौट सकता। विधि आयोग का कहना है कि ये सिर्फ कहने की बातें हैं। कोई भी गुजरे हुए दिन, इज्जत और मानसिक शांति नहीं लौटा सकता। हां, समुचित मुआवजा देकर उसके संताप को जरूर कम किया जा सकता है। आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक अब तक तो भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में मुलजिम को रिहा कर देने की तजवीज थी लेकिन हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने ये कानूनी और संवैधानिक अधिकारों का सवाल उठाया था।
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