BTech एडमिशन गड़बड़ी: टॉपर्स को दे दिए दोयम दर्जे के कॉलेज | mp news

Bhopal Samachar
भोपाल। प्रदेश के सरकारी और निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में (बीटेक) प्रवेश के लिए डायरेक्ट ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (डीटीई) काउंसलिंग करता है। हर साल कम से कम तीन राउंड काउंसलिंग होती है। इसके बाद स्पेशल राउंड भी होता है। इन सभी में मैरिट के आधार पर सीटें अलॉट की जाती हैं। फिर इंटरनल चेंज की प्रक्रिया की जा जाती है। यानी सीट रिक्त होने पर विद्यार्थी पसंद के कॉलेज में पसंद की ब्रांच ले सकते हैं। 

डीटीई ने इस बार केवल दो राउंड ही किए। स्पेशल राउंड भी नहीं किया और कॉलेज व ब्रांच के इंटरनल चेंज भी कर दिए। इससे 39 हजार सीट खाली रह गईं और करीब 5 हजार विद्यार्थियों को पसंद की ब्रांच नहीं मिली। इस कारण छात्रों ने इंटरनल चेंज में भी गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं। जिन छात्रों की रैंक एक लाख से कम थी, उन्हें अच्छे कॉलेज और अच्छी ब्रांच नहीं दी गई जबकि ढाई से पौने चार लाख तक की रैंक वालों को टॉप के कॉलेजों में पसंदीदा ब्रांच अलॉट कर दी गई। जब विद्यार्थियों ने इस पर आपत्ति जताई तो उन्हें जांच का आश्वासन दिया गया। 

लिस्ट जारी हुई तो खुली पोल 
डीटीई की दो राउंड काउंसलिंग के बाद एडमिशन लिस्ट जारी होने पर धांधली का खुलासा हुआ। विद्यार्थियों ने आपत्तियां दर्ज कराना शुरू कर दिया। विभाग ने जो सूची जारी की, उसमें एसजीएसआईटीएस जैसे टॉप के कॉलेज में 3 लाख 83 हजार 571 रैंक वालों को सिविल ब्रांच अलॉट हो गई, जबकि 90 हजार से एक लाख रैंक वाले विद्यार्थियों को अवसर नहीं मिला। मैरिट को दरकिनार करने वाले अधिकारियों ने यह भी नहीं देखा कि बीटेक की सबसे कमजोर ब्रांच बायो मॉलीक्यूल में 144171 रैंक वालों के एडमिशन हुए हैं। यानी क्लोजिंग एक लाख 44 हजार रैंक पर ही हो गई। इसके बावजूद सीटों के इंटरनल चेंज में ढाई लाख से लेकर पौने चार लाख तक की रैंक वालों को टॉप के कॉलेजों में सिविल और मैकेनिकल जैसी ब्रांच मिल गई। विद्यार्थियों का कहना है कि जब डेढ़ लाख रैंक के पहले ही क्लोजिंग हो गई तो फिर पौने चार लाख रैंक वाले विद्यार्थी कहां से आ गए? 

कैटेगरी भी लांघ गए
सीटों की बंदरबांट करने वाले अधिकारियों ने कैटेगरी के नियम को भी नहीं माना। जनरल सीटों पर आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों को प्रवेश दे दिया, जबकि उनकी सीट खाली रह गई। इससे सामान्य वर्ग के सैकड़ों विद्यार्थियों के साथ अन्याय होगा। विभाग को गलती का अहसास हुआ तो लिस्ट में संशोधन कर उम्मीदवार के नाम के आगे सामान्य लिख दिया। लेकिन ये विद्यार्थी फीस मुक्त श्रेणी में बने हुए हैं। दो चीजें एक साथ कैसे हो सकती हैं। विद्यार्थी सामान्य भी रहे और आरक्षित की भांति उसकी फीस भी माफ रहे? 

इंजीनियरिंग कॉलेजों में 39 हजार सीटें खाली रहने की वजह राज्य सरकार के नियम और जिम्मेदारों की मनमानी है। देश के अन्य राज्यों में नियम है, यदि किसी स्टूडेंट को पहले दौर की काउंसलिंग में कोई कॉलेज अलॉट हो गया तो भी वह अंतिम दौर तक पसंदीदा कॉलेज और ब्रांच के लिए काउंसलिंग में हिस्सा ले सकता है। प्रदेश में ऐसा नहीं है। एक बार जो कॉलेज मिल गया वहीं एडमिशन लेना होता है। यदि वहां प्रवेश नहीं लिया और आखिरी काउंसलिंग तक पसंदीदा कॉलेज और ब्रांच का इंतजार किया तो जो कॉलेज अलॉट हुआ था वहां भी प्रवेश नहीं मिलेगा। ऐसे में अंतिम काउंसलिंग तक मनपसंद कॉलेज नहीं मिला तो छात्र के हाथ से दोनों अवसर चले जाते हैं। इसी तरह काउंसलिंग में हर बार 1100 रुपए फीस भी ली जाती है जबकि अन्य राज्यों में ऐसा नहीं होता है। राजस्थान या अन्य राज्यों में काउंसलिंग के सिर्फ एक बार 450 रुपए लगते हैं। 

गड़बड़ी न सुधारी तो कोर्ट जाएंगे
काउंसलिंग में गड़बड़ी हुई है। उच्च रैंक होने के बाद भी हमें टॉप कॉलेजों और ब्रांचों में प्रवेश नहीं मिला है, जबकि कमजोर रैंक वालों को टॉप कॉलेजों में टॉप ब्रांचों में प्रवेश दिया गया है। हमने गुहार लगाई है। यदि सीटों के आवंटन की धांधली जल्द सुधारी नहीं गई तो हम कोर्ट की शरण में जाएंगे। आदित्य, रोहन तिवारी, रजनी सिंह, अनामिका विश्नोई, पीड़ित विद्यार्थी 
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