जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भर्ती के लिए CPCT सर्टिफिकेट (CPCT Certificate) की योग्यता होने पर अपनी मुहर लगा दी है। जस्टिस सुजय पॉल की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि, याचिकाकर्ता यह साबित करने में असफल रहे कि, कहीं से भी उनके कानूनी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है। आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि तक CPCT न होने पर कोर्ट किसी प्रकार का परमादेश जारी नहीं कर सकती। उक्त मत के साथ कोर्ट ने पूर्व में जारी अंतिम आदेशों को हटाते हुए दायर याचिकाएं खारिज कर दी है।
12 लोगों की ओर से दायर किया यह मामला
उल्लेखनीय है कि, यह मामला रूचिर जैन, अश्वनी कुमार मिश्र व अनुपमा तिवारी सहित करीब 12 लोगों की ओर से दायर किया गया था। जिसमें मध्यप्रदेश जूनियर सर्विस एग्जाम रूल्स में CPCT सर्टिफिकेट (कम्प्यूटर प्रोफिसिएंसी सर्टिफिकेट टेस्ट) की अनिर्वायता को चुनौती दी गई थी।
दायर याचिका में कहा गया है कि, पीएससी द्वारा अस्सिटेंट ग्रेड-3 की 381 तथा स्टेनोग्राफी के 127 पद के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। याचिकाकर्ता ने अस्सिटेंट ग्रेड 3 पद के लिए आवेदन किया था, लेकिन CPCT सर्टिफिकेट नहीं होने के कारण उसे अयोग्य करार कर दिया था। याचिका की सुनवाई के दौरान एकलपीठ ने पाया कि, ग्वालियर बैंच ने एक आदेश में CPCT सर्टिफिकेट की अनिर्वायता के संबंध में सशर्त आदेश जारी किये। वहीं इंदौर बैंच ने CPCT सर्टिफिकेट की अनिर्वायता को नियम विरुद्ध करार दिया था।
इंदौर व ग्वालियर बेंच का विरोधाभासी फैसला
संबंधित मामलो में इंदौर व ग्वालियर बेंच के विरोधाभासी फैसले के कारण प्रकरण को मुख्यपीठ ट्रांसफर किया गया था, जिस पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि, CPCT सर्टिफिकेट की अनिवार्यता नियमों की अवहेलना नहीं है। युगलपीठ ने इंदौर बैंच के आदेश को रद्द करते हुए याचिका को सुनवाई के लिए संबंधित कोर्ट के समक्ष पेश करने के आदेश दिये थे। जिस पर उक्त मामलों की सुनवाई जस्टिस सुजय पॉल की एकलपीठ के समक्ष की जा रहीं थी।
CPCT की अनिवार्यता पर मुहर
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आवेदकों की ओर से पूर्व के उम्मीदवारों को छूट दिये जाने संबंधी मुद्दे पर कहा कि, उस दौरान विज्ञापन की शर्ते अलग थी, उक्त पूर्व के उम्मीदवारों से याचिकाकर्ता सामानता का दावा नहीं कर सकते, क्योकि सहायक ग्रेड-3 के लिये स्पष्ट कहा गया की वह योग्य नहीं माना जायेगा।
जिसके पास न्यायालयों का प्रमाण पत्र नहीं है, क्योकि विभाग द्धारा फरवरी 2015 में स्पष्ट निर्देशित किया गया था कि, CPCT का प्रमाण-पत्र संस्थान से प्राप्त कर उसका होना अनिवार्य है। कोर्ट ने आवेदकों के उस तर्क को भी अमान्य कर दिया जिसमें कहा गया था कि, वह टाइपिंग सहित अन्य योग्यता रखते है, जो कि उन्हें पात्र बनाती है। सुनवाई पश्चात् कोर्ट ने पूर्व के अंतरिम आदेशों को हटाते हुए आवेदकों को किसी प्रकार की राहत न देते हुए दायर याचिकाएं खारिज कर दी। मामले में राज्य सरकार की ओर से शासकीय अधिवक्ता अमित सेठ ने पैरवी की।
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