एक समय मध्यप्रदेश के बालाघाट का नाम नक्सलवाद के कारण भी उतना ही कुख्यात था जितना आज समीपवर्ती राज्य छत्तीसगढ़ के कुछ जिले हैं। नक्सलवाद के साथ वे भोले लोग जुड़ जाते हैं, जिन्हें समाज अपने साथ जोड़ना नहीं चाहता। अब जोड़ने की ऐसी “पहल” बालाघाट से शुरू की गई है। पिछले एक सप्ताह से गोली चलाने के नाम से जाने जाने वाले हाथ आदिवासियों के साथ दिख रहे हैं। बालाघाट, बैहर बारासिवनी और लाल बर्रा के साथ 15 से अधिक गावों में सामुदायिक पुलिस नागरिकों के साथ जुड़ने का प्रयोग कर रही है।
मूलतः नक्सलवाद की समस्या का आधार बिंदु “गैर बराबरी” है। इस गैर बराबरी को दूर करने के लिए कोई ठोस योजना न होने से इसका स्वरूप बिगड़ा और विदेशी दर्शन की हवा ने इसे हिंसा में बदल दिया। अपनी शक्ति छतीसगढ़ में दिखाने के बाद नक्सलवाद समर्थक मध्यप्रदेश में अपनी योजना के तहत छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के कबीरधाम से नक्सली गढ़ी मुक्की होते हुए सूपखार के जंगल से सीधे मंडला की सीमा में प्रवेश कर गये। उनका टारगेट मंडला, डिंडौरी, अनूपपुर, उमरिया से सीधे सिंगरौली तक रोडमैपिंग करने का था। नक्सली नया कॉरीडोर तैयार कर रहे हैं। बालाघाट में इसकी हवा फैले इसके पूर्व 11 अगस्त से 15 अगस्त तक पुलिस ने अन्य सुरक्षा बलों के साथ बंदूक छोड़ सांस्कृतिक जुडाव का प्रयोग किया। छोटे खेलों से विचार मंथन तक के कार्यक्रम किये।
छतीसगढ़ में “सलवा जुडूम” से बिलकुल इतर। सामूहिक भोज, खेलकूद में वे सारे लोग शामिल हुए जो आदिवासियों में भय का पर्याय थे। सरकार की अपनी नीतियाँ होती है। यूपीए सरकार के गृह मंत्री पी चिदम्बरम नक्सली समस्या का निदान बंदूक मानते थे। बंदूक से अब तक कोई हल नहीं निकला। समस्या और विकराल हो गई। मध्यप्रदेश शासन ने इसे प्रदेश में फैलने से रोकने की कोशिश की है। पुलिस ने 90 गांव चिन्हित किए हैं। इन गांव के युवाओं को पुलिस भर्ती में मौका दिया जा रहा है वैसे यह सब तभी हो जाना था जब ये बात सामने आई थी कि नक्सल प्रभावित जिलों में सक्रिय विस्तार दलम अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए युवाओं को बहला फुसलाकर नक्सली बना रहा है। ख़ैर जब जागे तब ही सवेरा।
यद्यपि मध्यप्रदेश में नक्सलियों ने बीते कुछ सालों में किसी बड़ी घटना को अंजाम नहीं दिया है, लेकिन बालाघाट और मंडला में नक्सली मूवमेंट की सूचना के बाद अब सरकार नक्सलियों को गोली से नहीं, बल्कि ग्रामीणों को विकास से जोड़ने की “पहल” कर रही है। कोई भी योजना हो सतत निगरानी मांगती है। अक्सर सरकार इसमें पिछड़ जाती है। सरकार की पहल का निष्पक्ष मूल्यांकन भी जरूरी है। सरकार को इसमें कुछ और लोगों को भी जोड़ना चाहिए।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करें) या फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।