चुनाव आयोग से देश 16 विपक्षी दलों ने संयुक्त रूप से मांग की है कि 2019 में मतदाता ‘बैलट पेपर’ यानी मतपत्र से ही चुनाव कराएँ जाएँ। उनका कहना है कि इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन्स (ई.वी.एम.) फिर चाहे वे ‘वोटर वैरीफाइएबल पेपर ऑडिट ट्रायल’ (वी.वी.पैट) से युक्त ही क्यों न हों, अस्वीकार्य हैं। पिछले 4 वर्षों से विभिन्न विपक्षी दल आवाज उठाते आ रहे हैं कि ई.वी.एम्स के साथ सरकार ने छेड़छाड़ की है जिससे भाजपा को आम चुनावों ही नहीं, विधानसभा चुनावों में भी जबरदस्त जीत मिली है।
हाल के दिनों में दुनिया भर में हुए चुनावों में धांधली के आरोप लगे हैं। नाजी शासन से लेकर २१ वीं सदी के सब-सहारा अफ्रीका (केन्या, रवांडा, जिम्बाब्वे, यूगांडा, ट्यूनीशिया) तथा चीन, रूस, तुर्की, सीरिया, उत्तर कोरिया जैसे तानाशाही देशों ने बहुदलीय प्रणाली को समाप्त कर दिया। इसके साथ-साथ अमरीका तथा यू.के. जैसे देशों में भी चुनावों के निष्पक्ष आयोजन पर सवाल उठते रहे हैं। इन मापदंडों के अंतर्गत यदि हम भारत के चुनावों पर नजर डालें तो आवश्यक मापदंडों को हम पूरा करते हैं।
सबसे पहले तो हमारी बहुदलीय प्रणाली फलफूल रही है। हमारे पास पूरी तरह इलैक्ट्रॉनिक प्रणाली अपनाने वाला विश्व का एकमात्र चुनाव आयोग है। ई.वी.एम्स का उपयोग ऑस्ट्रेलिया, एस्टोनिया, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नामीबिया, नीदरलैंड, नार्वे, पेरू, रोमानिया, स्विट्जरलैंड, यू.के., वेनेजुएला, फिलीपींस सहित 20 देश कर रहे हैं परंतु इनमें से 6 देश अभी भी पूरी तरह से इलैक्ट्रॉनिक नहीं हैं। इतना बड़ा लोकतंत्र होने के नाते सभी मत ई.वी.एम. से डलवाना एक बड़ी उपलब्धि है। वास्तव में भारतीय चुनाव आयोग ने कई देशों को स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव आयोजित करने में भी मदद की है और ई.वी.एम्स व स्याही भेजने से लेकर उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए अपने अधिकारी भी भेजे हैं।
महत्वपूर्ण बात यह है कि विपक्षी दल तब ऐसे आरोप नहीं लगाते जब जीत स्वयं उनकी हुई हो। जैसा कि कर्नाटक अथवा विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों के दौरान देखा गया है। हैरान करने वाली बात है कि जब पाकिस्तान के हालिया आम चुनावों में आधी ई.वी.एम्स के काम न करने पर मतपत्रों से मतदान करवाना पड़ा तो कई लोगों ने पूछा कि भारतीय चुनाव आयोग से सलाह क्यों नहीं ली गई?
जिस देश के ७० प्रतिशत लोग अलग-अलग भाषाएं बोलते हों, वहां सरकार के लिए चुनावों में धांधली करना कठिन है। किसी भी व्यवस्था में सुधार की मांग हमेशा उचित है परंतु पीछे की ओर कदम हटाने की मांग को किसी भी तरह से सही दिशा में सही कदम नहीं ठहराया जा सकता। फिर भी हमें नहीं भूलना चाहिए कि मतदान पत्र से हुए कईचुनाव को हाई कोर्ट ने धांधली के कारण रद्द किये हैं। ऐसे में चुनावों में धांधली से बचने के लिए लोकतंत्र की सभी संस्थाओं के साथ-साथ राजनीतिक दलों को भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। सिर्फ अपनी सुविधा की बात से बचना चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।