कांग्रेस के शीर्ष स्तर पर प्रियंका वाड्रा के सक्रिय राजनीति में आने पर गंभीरता से विचार चल रहा है। अभी तक अलग-अलग समयों में निचले स्तर से नेताओं और कार्यकर्ताओं की ओर से उनको कांग्रेस में सक्रिय करने की मांग उठती रही है, पर कभी केंद्रीय नेतृत्व के बीच उन पर चर्चा नहीं हुई।अब हुई है, परिणाम प्रतीक्षित हैं।
पहले कांग्रेस के बड़े नेताओं का जवाब यह था कि प्रियंका अपने बच्चों पर ज्यादा ध्यान दे रहीं हैं और राजनीति में नहीं आना चाहतीं। बाद में यह जवाब आया कि इसका फैसला उन्हें स्वयं करना है। प्रियंका ने अपनी ओर से इस बारे में कोई बयान कभी नहीं दिया। हां, रॉबर्ट वाड्रा ने 2013 में अवश्य कहा कि वो राजनीति में आ सकतीं हैं। इसका बाद में प्रियंका ने खंडन कर दिया था। प्रियंका की भूमिका सोनिया गांधी और राहुल गांधी के चुनावी क्षेत्र रायबरेली और अमेठी की देखभाल, चुनाव के समय वहां का प्रबंधन और प्रचार संभालने तक सीमित रहती रही है। हालांकि पिछले आम चुनाव में वह रणनीतिक बैठकों से लेकर, घोषणा पत्र की तैयारी, राहुल एवं सोनिया की चुनावी सभाएं तय करने और सोशल मीडिया प्रचार में सक्रिय थीं। उस समय ऐसा लगने लगा था कि अब प्रियंका राजनीति में आ गई हैं, किंतु चुनाव के बाद वो रायबरेली और अमेठी के अलावा कहीं दिखीं नहीं।
खबर है कि , कांग्रेस उनको रायबरेली से चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है। सोनिया का स्वास्य वैसा नहीं है कि पहले की तरह चुनाव प्रचार कर सकें। उन्होंने यह संकेत दिया है कि अब वो लोक सभा चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं। हालांकि इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है, पर कांग्रेस पर नजर रखने वाले जानते हैं कि सोनिया काफी समय से इसका संकेत दे रहीं हैं। इतना साफ है कि सोनिया यदि चुनाव नहीं लड़ने का फैसला करतीं हैं तो फिर प्रियंका वहां से उम्मीदवार होंगी और इस तरह कांग्रेस में उनकी राजनीतिक सक्रियता आरंभ हो जाएगी। प्रियंका के उम्मीदवार बनने में अब कोई समस्या भी नहीं है।
जब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी थी तो वातावरण ऐसा था मानो प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में तेजी से कार्रवाई होगी, वो जेल भी जा सकते हैं। भाजपा ने चुनाव में इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया था। भय यही था कि अगर प्रियंका वाड्रा कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हुई तो यह भाजपा के पक्ष में चला जाएगा। कांग्रेस के लिए रॉबर्ट वाड्रा के मामले में प्रियंका का बचाव कठिन होगा। हरियाणा और राजस्थान, जहां उन पर गलत तरीके से जमीन के सौदों में अकूत धन कमाने का आरोप था, भाजपा सरकार होते हुए भी जांच एवं कानूनी कार्रवाई इस अवस्था में नहीं पहुंची कि रॉबर्ट वाड्रा का कुछ बिगड़ सके। अब कांग्रेस इस आशंका से मुक्त है।
कांग्रेस अपने जीवन काल के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। जद-से को इतनी सीटें आ गई कि वह कर्नाटक की साझा सरकार में शामिल है, अन्यथा देश के सभी बड़े राज्यों की सत्ता से वह बाहर हो जाती। अनेक राज्यों में उसे शून्य से संगठन का काम आरंभ करना है। पिछले मार्च की पार्टी का महाधिवेशन हो या हाल में संपन्न कांग्रेस कार्यसमिति की दो बैठकें, किसी से भी ऐसी उम्मीद पैदा नहीं हुई कि नेतृत्व ने ठोस कार्ययोजनाओं और संकल्पों के साथ कांग्रेस को अपने पैरों पर पुन: खड़ा होने का निश्चय कर लिया है। पहले प्रियंका को लेकर पार्टी के अंदर एवं उनके समर्थकों की कल्पना थी कि उनमें इंदिरा गांधी की छवि दिखती है, इसलिए वह जनता के बीच जाएंगी तो उसका चमत्कारिक असर हो सकता है। हर निराश क्षणों में उनको पार्टी में लाने की मांग किसी न किसी कोने से अवश्य आई। वह जितनी आसानी से लोगों से घुलमिल जातीं हैं उतना राहुल नहीं निष्कर्ष यह है कि दोनों भाई-बहन मिलकर एक-दूसरे की कमियों को पूरा करेंगे और पार्टी को उसका लाभ होगा।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।