नई दिल्ली। महिला और बाल विकास मंत्रालय ने निजी क्षेत्र की महिलाओं की कार्यस्थलों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कंपनी मामलों के मंत्री से अनुरोध किया था कि वे सभी कंपनियों के निदेशकों की रिपोर्ट में कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न, (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के अनुपालन का ब्यौरा दिया जाना अनिवार्य बनाए। इस अनुरोध पर कंपनी मामलों के मंत्रालय ने 31 जुलाई 2018 को कंपनी (लेखा) कानून के नियमों में संशोधन संबंधी अधिसूचना जारी की। इसके द्वारा कंपनी कानून में एक अतिरिक्त धारा (X) जोड़ी गई, जिसके निम्नलिखित व्यवस्थाएं की गई हैं।
‘कंपनी की ओर से यह बयान जारी किया जाए कि उसने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत आंतरिक सुनवाई शिकायत समिति के गठन का अनुपालन किया है।’ श्रीमती गांधी ने इसके लिए कंपनी मामलों के मंत्री को धन्यवाद देते हुए कहा,’यह निजी क्षेत्र में महिलाओं के लिए कार्यस्थलों को सुरक्षित बनाए जाने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि वह भारतीय प्रतिभूति और विनियमन बोर्ड (सेबी) से भी अनुरोध करेंगी कि वह सूचीबद्ध कंपनियों के लिए उनके कॉरपोरेट गवर्नेंस रिपोर्ट में ऐसा ब्यौरा दिया जाना अनिवार्य बनाए। ऐसा होने पर महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित यह नई व्यवस्था लागू करना कंपनियों के निदेशकों की जवाबदेही हो जाएगी।
कंपनी कानून 2013 के अनुच्छेद 134 की व्यवस्थाओं के अनुसार सभी कंपनियों के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह ब्यौरा देना अनिवार्य बनाया गया है कि उन्होंने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न, (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 का अपने यहां अनुपालन किया है।
महिला और बाल विकास मंत्रालय इस कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। इसके लिए कानून के तहत बनाए गए विस्तृत नियम जारी किये जा चुके हैं। सभी केन्द्रीय मंत्रालयों, विभागों तथा उनके तहत काम करने वाले संगठनों के लिए इन नियमों के तहत अपने यहां आंतरिक शिकायत सुनवाई समिति का गठन करना अनिवार्य बनाया गया है। मंत्रालय ने इसके अलावा पीड़ित महिलाओं को सीधे अपनी शिकायत भेजने के लिए शी बॉक्स नाम की एक सुविधा भी उपलब्ध कराई है।
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