नई दिल्ली। बीमा रकम भुगतान को लेकर पटियाला हाउस कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि शादीशुदा व्यक्ति की मौत पर नॉमिनी न होने पर भी पत्नी और बच्चे बीमा रकम पाने के पहले अधिकारी होते हैं। कोर्ट ने कहा कि बीमा रकम का भुगतान करते समय बीमा कंपनियों को मृतक के कानूनी उत्तराधिकारी की भी जांच करनी चाहिए।
पिता उत्तराधिकारी नहीं
अदालत ने बीमा रकम में से मृतक के पिता के हिस्से को रद्द कर दिया। कुल बीमा रकम का आधा-आधा हिस्सा मृतक की मां और पत्नी को देने का आदेश दिया है। अदालत ने पिता को आदेश दिया है कि वह कुल रकम का 50 फीसदी (पांच लाख 78 हजार 8 सौ रुपये) हिस्सा अपनी बहू गायत्री को दे। साथ ही गायत्री द्वारा याचिका दाखिल करने से लेकर रकम के भुगतान के बीच के समय का पांच फीसदी साधारण ब्याज भी चुकता करे।
माता-पिता नॉमिनी थे
पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ट्विंकल वाधवा की अदालत ने सड़क दुर्घटना में मारे गए युवक की पत्नी को उसकी एलआईसी पॉलिसी में 50 फीसदी बीमा रकम पाने का हकदार माना है। दरअसल,मृतक की बीमा पॉलिसी में उसके माता-पिता नॉमिनी थे। एलआईसी ने इसी आधार पर पत्नी को बीमा रकम देने से इनकार कर दिया और माता-पिता को 11 लाख 57 हजार 600 रुपये का भुगतान किया था।
अदालत ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कानूनी तौर पर पति अथवा पत्नी की मौत पर किसी भी तरह के लाभ के लिए पहला हक जीवनसाथी का होता है। अदालत ने यह भी कहा कि बीमित व्यक्ति द्वारा बीमा पॉलिसी में नॉमिनी बनाने का यह कतई मतलब नहीं होता कि उसने सारी वसीयत नॉमिनी के नाम कर दी है।
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