भोपाल। मध्यप्रदेश में सीएम शिवराज सिंह के विकल्प के रूप में पेश कि गए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और छिंदवाड़ा सांसद कमलनाथ के नेता आज भी संजय गांधी ही हैं। वो निजी आवास में तो संजय गांधी की तस्वीरों का संग्रह मिलता ही है परंतु उन्होंने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में भी संजय गांधी की तस्वीर लगा दी है। आइए जानते हैं कौन हैं संजय गांधी, कैसा था उनका स्वभाव और कांग्रेसी उन्हे याद क्यों नहीं करते। कांग्रेस में उनका जन्मदिन और पुण्यतिथि क्यों नहीं मनाई जाती।
परिवार नियोजन कार्यक्रम ने दूरियां बढ़ाईं
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे पुष्पेश पंत कहते हैं, "कहीं न कहीं हिंदुस्तान की बेहतरी का एक सपना भी उनके अंदर था, लेकिन परिवार नियोजन के बारे में जो सख़्त रवैया आपात काल के दौरान अपनाया गया। जिस तरह से परिवार नियोजन कार्यक्रम में ज़बरदस्ती की गई, उसने भारतीय जनमानस को कांग्रेस पार्टी से बहुत बहुत दूर कर दिया।
लोग संजय गांधी से बहुत डरते थे
कुमकुम चड्ढा हिंदुस्तान टाइम्स से जुड़ी हुई वरिष्ठ पत्रकार हैं और उन्होंने बहुत नज़दीक से संजय गाँधी को कवर किया है। कुमकुम चड्ढा बताती हैं, "किस तरह से उन्होंने अपने लोगों से ये सब करने के लिए कहा, ये मैं नहीं जानती, लेकिन इतना मुझे पता है कि उन्होंने ऐसा करने के लिए हर एक के लिए लक्ष्य निर्धारित किए थे। हर कोई चाहता था कि इस लक्ष्य को हर कीमत पर पूरा किया जाए। वो कहती हैं, "दूसरी तरफ़ संजय के पास जा कर कोई ये नहीं कह सकता था कि ये नहीं हुआ। वो लोग संजय से बहुत डरते थे। हर तरफ़ डर का माहौल था और दूसरे लोग संजय के पास धैर्य का शुरू से अभाव था। उनकी डेडलाइन हमेशा एक दिन पहले की हुआ करती थी। इसलिए संजय के निर्देश पर जो कुछ भी लोग कर रहे थे, वो बहुत जल्दबाज़ी में कर रहे थे, जिसकी वजह से उसके उलटे परिणाम आने शुरू हो गए।
संजय गांधी को ना सुनना पसंद नहीं था
कुमकुम कहती हैं, "उस समय पूरे भारत में सेंसरशिप लगी हुई थी और किसी में ये हिम्मत नहीं थी कि वो संजय गाँधी से जा कर कहता कि आपको ये नहीं करना चाहिए। मैं नहीं समझती कि संजय गाँधी ये सुनने के मूड में थे और उनका इस तरह का मिजाज़ भी नहीं था कि वो इस तरह की बातें सुनते।
विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी संजय गांधी ने ही कराई थी
संजय गांधी पर सबसे गंभीर आरोप था इमरजेंसी के दौरान विपक्षी नेताओं की गिरफ़्तारी का आदेश देना, कड़ाई से सेंसरशिप लागू करना और सरकारी कामकाज में बिना किसी आधिकारिक भूमिका के हस्तक्षेप करना। जब उन्हें लगा कि इंदर कुमार गुजराल उनका कहना नहीं मानेंगे तो उन्हें उनके पद से हटा दिया गया।
इंदिरा गांधी भी चुप रह जातीं थीं
जग्गा कपूर अपनी किताब 'व्हाट प्राइस परजरी- फ़ैक्ट्स ऑफ़ द शाह कमीशन' में लिखते हैं, "संजय ने गुजराल को हुक्म दिया कि अब से प्रसारण से पहले आकाशवाणी के सारे समाचार बुलेटिन उन्हें दिखाए जाएं। गुजराल ने कहा ये संभव नहीं है। इंदिरा दरवाज़े के पास खड़ी संजय और गुजराल की ये बातचीत सुन रही थीं, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा।
इंदर कुमार गुजराल को आदेशित करने लगे थे
वो आगे लिखते हैं, "अगली सुबह जब इंदिरा मौजूद नहीं थीं, संजय ने गुजराल से कहा कि आप अपना मंत्रालय ढंग से नहीं चला रहे हैं। गुजराल का जवाब था कि अगर तुम्हें मुझसे कुछ बात करनी है, तो तुम्हें सभ्य और विनम्र होना होगा। मेरा और प्रधानमंत्री का साथ तब का है, जब तुम पैदा भी नहीं हुए थे। तुम्हें मेरे मंत्रालय में टाँग अड़ाने का कोई हक नहीं है।
गुजराल ने बीबीसी ब्यूरो को गिरफ्तार करने से इंकार किया
अगले दिन संजय गाँधी के ख़ास दोस्त मोहम्मद यूनुस ने गुजराल को फ़ोन कर कहा कि वो दिल्ली में बीबीसी का दफ़्तर बंद करवा दें और उसके ब्यूरो चीफ़ मार्क टली को गिरफ़्तार कर लें, क्योंकि उन्होंने कथित रूप से ये झूठी ख़बर प्रसारित की है कि जगजीवन राम और स्वर्ण सिंह को घर में नज़रबंद कर दिया गया है। मार्क टली अपनी किताब 'फ़्रॉम राज टू राजीव' में लिखते हैं, "यूनुस ने गुजराल को हुक्म दिया कि मार्क टली को बुलवाओ और उसकी पैंट उतरवा कर उसकी बेंत से पिटाई करवाओ और जेल में ठूंस दो। गुजराल ने जवाब दिया कि एक विदेशी संवाददाता को गिरफ़्तार करवाना सूचना और प्रसारण मंत्रालय का काम नहीं है।
इंदिरा गांधी ने संजय के कहने पर गुजराल का मंत्रालय छीन लिया
वो आगे लिखते हैं, "फ़ोन रखते ही उन्होंने बीबीसी प्रसारण की मॉनीटरिंग रिपोर्ट मंगवाई, जिससे पता चल गया कि बीबीसी ने जगजीवन राम और स्वर्ण सिंह को हिरासत में लिए जाने की ख़बर प्रसारित नहीं की थी। उन्होंने ये सूचना इंदिरा गाँधी तक पहुंचा दी, लेकिन उसी शाम इंदिरा गाँधी ने उन्हें फ़ोन कर कहा कि वो उनसे सूचना और प्रसारण मंत्रालय ले रही हैं, क्योंकि मौजूदा हालात में उस कड़े हाथों से चलाए जाने की ज़रूरत है।
संजय गांधी के करीबियों ने खूब फायदा उठाया
जो लोग संजय गांधी के क़रीब थे, उन्होंने इमरजेंसी के दौरान उनका पूरा फ़ायदा उठाया और लोगों के बीच उनकी छवि ख़राब करने में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई। इनमें से एक थी अभिनेत्री अमृता सिंह की माँ रुख़साना सुल्तान। कुमकुम चडढ़ा बताती हैं, "एक स्तर पर दोनों के बारे में काफ़ी अनर्गल बातें कही जाती थीं। रुख़साना सबको साफ़ कर देती थी और उन्होंने मुझसे भी कहा था कि संजय उनके बहुत करीबी दोस्त हैं। इमरजेंसी के दौरान रुख़साना के पास बहुत ताकत थीं। इस ताक़त का उन्होंने बहुत बेजा इस्तेमाल किया, चाहे वो परिवार नियोजन हो या जामा मस्जिद का सौदर्यीकरण हो।
कमलनाथ ने भी कभी संजय गांधी को नहीं रोका
अगर लोग संजय गांधी से नफ़रत करते थे, तो वो इसलिए कि वो उनके नाम पर ये कार्यक्रम चलाती थीं। संजय का कोई भी ऐसा दोस्त नहीं था, जो उनसे ये कह सकता था कि आप ये ग़लत काम कर रहे हैं। कमलनाथ खुद को उनका बाल सखा और इंदिरा गांधी का तीसरा बेटा कहते हैं परंतु उन्होंने भी संजय गांधी की छवि सुधारने के लिए संजय गांधी के सामने आने की हिम्मत नहीं की। संजय गाँधी की आम छवि कम बोलने वाले मुंहफट शख़्स की थी। उनके मन में अपने सहयोगियों के लिए कोई इज़्ज़त नहीं थी, चाहे वो उम्र में उनसे कितने ही बड़े क्यों न हों।
संजय गांधी के परिवार को भुला दिया
कमलनाथ संजय गांधी को तो गर्व से याद करते हैं परंतु उनके परिवार से कोई रिश्ता नहीं रखते। कमलनाथ ने उस समय जबकि मैनका गांधी सबसे अकेली थीं, किसी तरह की मदद नहीं की। यहां तक कि उन्हे व वरुण को कांग्रेस में वापस लाने की भी कोई कोशिश नहीं की।
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