GWALIOR: कोई भी सरकारी कर्मचारी अगर अपनी ड्यूटी में लापरवाही बरते तो उसे कई मर्तबा निंदा की सजा सुनाई जाती है। यानी कर्मचारी की ऑन-पेपर निंदा। अब न्यायालय ने इस परंपरागत सजा पर सवाल उठाए हैं। निंदा की सजा के बारे में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने कहा कि ये सजा कौन से कानून के मुताबिक दी जाती है और इससे क्या फर्क पड़ जाता है? रिटायर एडीजी एसएस शुक्ला बताते हैं- "पुलिस मैन्युअल में निंदा की सजा का प्रावधान है। निंदा की सजा की सर्विस बुक में एंट्री भी की जाती है। हालांकि एक निंदा की सजा का पुलिसकर्मी के प्रमोशन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। नियमों के मुताबिक- प्रमोशन की प्रक्रिया के दौरान पुलिसकर्मियों की सर्विस बुक देखी जाती है। इससे पता चलता है कि उसे अब तक कितनी बार सजा मिली है और कितनी बार इनाम मिला है। अगर सर्विस बुक में सजा की संख्या ईनामों से ज्यादा हो, तो प्रमोशन जरूर प्रभावित होता है। पुलिसकर्मियों के लिए सिर्फ इसी लिहाज से निंदा की सजा चिंताजनक होती है।'
कोर्ट में शराब तस्करी के आरोप में पकड़ी गई सीमा मराठा की जमानत याचिका पर सुनवाई चल रही थी। सुनवाई के दौरान सीमा मराठा के वकील मोहित शिवहरे ने कोर्ट को बताया कि पुलिस ने जानबूझकर शराब की जांच के लिए लगभग 2 महीने बाद सैंपल भेजे। सीमा के खिलाफ 13 जून को मामला दर्ज किया गया था। उसे उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया। उसकी जमानत इसलिए नहीं हो रही थी क्योंकि पुलिस ने सैंपल देर से भेजे और इस वजह से उसे जांच रिपोर्ट नहीं मिल पा रही थी।
कोर्ट ने एसपी से जवाब मांगा कि सैंपल इतनी देरी से क्यों भेजे गए और इसमें किसकी गलती है? एसपी ने जवाब दिया कि देरी करने के दोषी अधिकारियों को निंदा की सजा दी गई है। बस इसी बात पर जस्टिस विवेक अग्रवाल ने पूछा कि- "एसपी पहले तो ये बताएं कि पुलिस नियमावली के किस प्रावधान के तहत एसआई प्रवीण शर्मा और एसआई राजेंद्र सिंह को निंदा की सजा दी गई। इस सजा का उन पर क्या असर पड़ेगा? पहली बार में देखकर तो यही लगता है कि महज औपचारिकता निभाने के लिए ऐसी सजा दी गई है, जिसका नियमावली में उल्लेख ही नहीं है।' कोर्ट ने एसपी से इस संबंध में 7 दिन के भीतर स्पष्टीकरण मांगा है।
कोर्ट में शराब तस्करी के आरोप में पकड़ी गई सीमा मराठा की जमानत याचिका पर सुनवाई चल रही थी। सुनवाई के दौरान सीमा मराठा के वकील मोहित शिवहरे ने कोर्ट को बताया कि पुलिस ने जानबूझकर शराब की जांच के लिए लगभग 2 महीने बाद सैंपल भेजे। सीमा के खिलाफ 13 जून को मामला दर्ज किया गया था। उसे उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया। उसकी जमानत इसलिए नहीं हो रही थी क्योंकि पुलिस ने सैंपल देर से भेजे और इस वजह से उसे जांच रिपोर्ट नहीं मिल पा रही थी।
कोर्ट ने एसपी से जवाब मांगा कि सैंपल इतनी देरी से क्यों भेजे गए और इसमें किसकी गलती है? एसपी ने जवाब दिया कि देरी करने के दोषी अधिकारियों को निंदा की सजा दी गई है। बस इसी बात पर जस्टिस विवेक अग्रवाल ने पूछा कि- "एसपी पहले तो ये बताएं कि पुलिस नियमावली के किस प्रावधान के तहत एसआई प्रवीण शर्मा और एसआई राजेंद्र सिंह को निंदा की सजा दी गई। इस सजा का उन पर क्या असर पड़ेगा? पहली बार में देखकर तो यही लगता है कि महज औपचारिकता निभाने के लिए ऐसी सजा दी गई है, जिसका नियमावली में उल्लेख ही नहीं है।' कोर्ट ने एसपी से इस संबंध में 7 दिन के भीतर स्पष्टीकरण मांगा है।
इस मामले में कोर्ट का काफी समय भी बर्बाद हुआ। मामले की 3 बार सुनवाई हुई। पहली सुनवाई में कोर्ट और आरोपी के वकील को एसपी के जवाब की कॉपी नहीं मिली। दूसरी बार भी रीडर तक कॉपी नहीं पहुंची। तीसरी बार कोर्ट ने संबंधित कर्मचारी के खिलाफ 7 दिन में कार्रवाई का निर्देश देते हुए महिला सीमा मराठा को सशर्त जमानत दे दी।
मध्यप्रदेश और देश की प्रमुख खबरें पढ़ने, MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करें) या फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
मध्यप्रदेश और देश की प्रमुख खबरें पढ़ने, MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करें) या फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com