इंदौर। मप्र लोकसेवा आयोग (पीएससी) की राज्यसेवा परीक्षा-2012 के पर्चे लीक हुए थे। एसटीएफ ने कोर्ट में यह तथ्य रखा था। एसटीएफ की जांच के बाद पीएससी ने परीक्षा के अलग-अलग चरणों में 23 उम्मीदवारों को लीक पर्चों से लाभ मिलने की बात मानी थी। एसटीएफ की जांच के आधार दो साल पहले ही एक अभ्यर्थी ने सीबीआई को लिखित शिकायत कर पीएससी मामले में जांच की मांग की थी। बाद में सीबीआई ने आरटीआई से खुद को अलग बताते हुए अभ्यर्थी को किसी तरह की जानकारी देने से मना कर दिया। डेढ़ साल तक रोकने के बाद इस परीक्षा का रिजल्ट भी जारी कर दिया गया।
पुलिस ने 2014 में पीएससी के आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी की परीक्षा के पर्चे लीक करने का मामला पकड़ा था। पुलिस के हत्थे चढ़े गिरोह के सदस्यों ने कबूला था कि उन्होंने पीएससी-2012 की प्री व मेंस के पर्चे भी लीक किए हैं। राज्यसेवा परीक्षा के कुल सात पर्चे, जिनमें सामान्य अध्ययन के दो, हिंदी का एक, लोक प्रशासन के दो व समाजशास्त्र के दो पर्चे लीक करने की बात गिरोह के सदस्यों ने एसटीएफ के सामने कबूली थी। एसटीएफ ने भोपाल के विशेष न्यायालय में सितंबर 2014 में चालान पेश किया था। चालान के पेज नंबर 13 पर एसटीएफ के तत्कालीन जांच अधिकारी शैलेंद्रसिंह जादौन ने माना था कि आरोपितों से मिले सामान्य अध्ययन के दोनों व हिंदी का एक प्रश्नपत्र परीक्षा में पूछे प्रश्नपत्रों से मेल खा रहा है।
एसटीएफ की इसी जांच रिपोर्ट को आधार बनाकर इंदौर से परीक्षा में शामिल हुए अभ्यर्थी मुकेश राणे ने 30 मार्च 2016 को सीबीआई के भोपाल स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में लिखित शिकायत सौंपकर एफआईआर दर्ज करने व जांच की मांग की। शिकायत की प्रति मुख्यमंत्री से लेकर तमाम अधिकारियों को भेजी गई थी। जून 2016 में शिकायत पर कार्रवाई की जानकारी मांगने पर सीबीआई ने खुद को आरटीआई के प्रावधान से मुक्त बताते हुए जानकारी उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया।
पीएससी ने माना 12 को मिला लाभ
शिकायतकर्ता राणे के मुताबिक 27 नवंबर 2015 को पीएससी की बैठक में एसटीएफ की रिपोर्ट के आधार पर आयोग के सदस्यों ने लिखित बयान दिया था कि पर्चे लीक होने से प्रारंभिक परीक्षा में 12 उम्मीदवारों को व मेंस में 11 उम्मीदवारों को लाभ मिला। इन्हें आयोग ने परीक्षा से बाहर किया। हालांकि इसका विरोधाभासी एक बयान जारी कर कहा गया था कि लीकआउट से कितने लोगों को लाभ मिला इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इसके बावजूद न तो परीक्षा निरस्त की गई, न ही आगे कार्रवाई हुई। इस परीक्षा में साढ़े तीन लाख उम्मीदवार शामिल हुए थे। दूषित प्रक्रिया से इन सब के साथ धोखा हुआ है। इस परीक्षा में पीएससी के एक पूर्व चेयरमैन का पुत्र भी शामिल हुआ था। पीएससी में उपसचिव रहे एक अन्य अधिकारी के बेटे व भतीजे भी एक साथ पीएससी में चयनित हो चुके हैं। अधिकारियों के बच्चों की सफलता के ये आंकड़े सिर्फ संयोग नहीं हो सकते।
बाहर किया था
मुझे याद है एसटीएफ ने जिनके नाम जांच रिपोर्ट में लिखे थे, उन उम्मीदवारों को हमने परीक्षा के चरणों से बाहर कर दिया था। हालांकि उनमें से कुछ कोर्ट से राहत लेकर आए थे और इंटरव्यू में शामिल हुए थे। चयन को लेकर जानकारी नहीं है।
मनोहर दुबे, तत्कालीन सचिव, मप्र लोकसेवा आयोग
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