भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को होने के कारण इसको कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। यह पर्व पूरी दुनिया में पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी को भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था के केंद्र रहे हैं। वे कभी यशोदा मैया के लाल होते हैं, तो कभी ब्रज के नटखट कान्हा। इस बार ये पर्व 2 सितंबर को पड़ रहा है। जन्माष्टमी का व्रत करने वालों को इस दिन केवल एक ही समय भोजन करना चाहिए। व्रत वाले दिन, स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद, पूरे दिन उपवास रखकर रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि पर व्रत का पारण किया जाता है। व्रत का पारण रोहिणी नक्षत्र में श्री कृष्ण के जन्म के बाद किया जाता है।
ये है पूजा का सर्वोत्म मुहूर्त
इस वर्ष जन्माष्टमी का पर्व 02 सितम्बर रविवार को पड़ रहा है। सौभाग्यवश, इस वर्ष जन्माष्टमी के व्रतपर्व पर, मास ( भाद्रपद ) तिथि (अष्टमी ) दिन ( रविवार ) नक्षत्र ( रोहिणी ) का अद्भुत संयोग है। सोने में सुहागा यह है कि भारतीय स्टैण्डर्ड समयानुसार रविवार रात्रि को 08 बजकर 48 मिनट से लेकर अगले दिन सोमवार को सायं 07 बजकर 20 मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगी। रविवार को ही रोहिणी नक्षत्र रात्रि 08/49 से लेकर सोमवार को रात्रि 08/05 तक रहेगा। इसमे रविवार को रात्रि 10/00 बजे से लेकर रात्रि 11/57 तक वृष लग्न का समावेश रहेगा, उल्लेखनीय है कि योगेश्वर कृष्ण जी का जन्म रात्री 12 बजे वृष लग्न में ही हुआ था, तिथि (अष्टमी ) नक्षत्र ( रोहिणी ) का अद्भुत संयोग होने से यह (श्रीकृष्ण जयन्ती) योग बन गया है। अतः यह पावन त्यौहार रविवार को अति शुभ व महत्वपूर्ण हो गया है। गृहस्थों को रविवार ही व्रत ग्रहण करना चाहिए। मंदिर मठों आदि में उदयकालीन तिथि मानते हैं, वह निर्णय धर्मशास्त्रीय नहीं है, और सोमवार को तो भगवान के जन्म के समय न तो अष्टमी तिथि है और न ही रोहिणी नक्षत्र है।
श्रीकृष्ण देवकी और वासुदेव के 8वें पुत्र थे। मथुरा नगरी का राजा कंस था, जो कि बहुत अत्याचारी था। उसके अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे। एक समय आकाशवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी का 8वां पुत्र उसका वध करेगा। यह सुनकर कंस ने अपनी बहन देवकी को उसके पति वासुदेवसहित काल-कोठारी में डाल दिया। कंस ने देवकी के कृष्ण से पहले के 7 बच्चों को मार डाला। जब देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया, तब भगवान विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि वे श्रीकृष्ण को गोकुल में यशोदा माता और नंद बाबा के पास पहुंचा आएं, जहां वह अपने मामा कंस से सुरक्षित रह सकेगा। श्रीकृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माता और नंद बाबा की देखरेख में हुआ। बस, उनके जन्म की खुशी में तभी से प्रतिवर्ष जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है।
इस दिन मंदिरों को खासतौर पर सजाया जाता है। पूरे दिन व्रत का विधान है। सभी 12 बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान श्रीकृष्ण को झूला झुलाया जाता है और रासलीला का आयोजन होता है। जन्माष्टमी के दिन देश में अनेक जगह दही-हांडी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। दही-हांडी प्रतियोगिता में सभी जगह के बाल-गोविंदा भाग लेते हैं। छाछ-दही आदि से भरी एक मटकी रस्सी की सहायता से आसमान में लटका दी जाती है और बाल-गोविंदाओं द्वारा मटकी फोड़ने का प्रयास किया जाता है। दही-हांडी प्रतियोगिता में विजेता टीम को उचित इनाम दिए जाते हैं। जो विजेता टीम मटकी फोड़ने में सफल हो जाती है वह इनाम का हकदार होती है।
जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने का विधान है। अपनी सामर्थ्य के अनुसार फलाहार करना चाहिए। कोई भी भगवान हमें भूखा रहने के लिए नहीं कहता इसलिए अपनी श्रद्धा अनुसार व्रत करें। पूरे दिन व्रत में कुछ भी न खाने से आपके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। इसीलिए हमें श्रीकृष्ण के संदेशों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए।