भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 जीतने के लिए हर पार्टी और पार्टी के हर अधिनायक की अपनी रणनीति है। पार्टियां जातियों को ध्यान में रखकर प्लानिंग कर रहीं हैं। उनके पास कुछ पुराने आंकड़े हैं और उसके आधार पर भविष्य के अनुमान लगाए जा रहे हैं परंतु इस सबके बीच नेताओं की टोली है उस हुजूम को भुला दिया जो असल में मप्र का भाग्यविधाता है। 18 से 19 साल की उम्र के वोटर्स की संख्या 24 लाख है और इस बार यही वोटर्स मध्यप्रदेश की सरकार तय करेंगे।
इन्होंने ही मोदी लहर को तूफान बनाया था
2013 में इनकी संख्या 23.60 लाख थी। उन दिनों देश भर में मोदी लहर चल रही थी। हालांकि मध्यप्रदेश में होर्डिंग से नरेंद्र मोदी गायब थे और सीएम शिवराज सिंह के फोटो दिखाई दे रहे थे परंतु ये यंगिस्तान है, जो होर्डिंग से प्रभावित नहीं होता। इनके पास वक्त नहीं है, ये आमसभाओं से प्रभावित नहीं होता। इनके अपने कम्यूनिकेशंस टूल हैं। मध्यप्रदेश में 2013 और फिर 2014 में जो नतीजे आए उसमें ये 24 लाख थोकबंद वोटिंग का महत्वपूर्ण रोल था।
2018-19 में क्या होगा
ये वोटर किसी की बात नहीं मानता। इसे पता है कि वोट इसका पर्सनल मामला है। यह किसी को बताता भी नहीं कि किसे वोट करके लौट रहा है। बस ग्रुप डिस्कशन होते हैं और सब लोग तय कर लेते हैं कि उन्हे क्या करना है। 2013-14 में पीएम नरेंद्र मोदी में इस एजग्रुप को एक उम्मीद की किरण नजर आई थी। इसलिए थोकबंद वोटिंग हुई परंतु इस बार क्या होगा, यह इनके पेट के भीतर ही छुपा है। 75 साल के वयोवृद्ध कमलनाथ या जातिवाद और आरक्षण की राजनीति कर रहे सीएम शिवराज।
नए चेहरे पसंद करते हैं यंगस्टर्स
2013 के विधानसभा चुनाव में 127 नए चेहरे मैदान में थे। इसमें 62 यानी 49% जीत कर आए। भाजपा के 65 में से 44 और कांग्रेस के 62 में से 18 जीते। यानि एक बात तो साफ है कि वोटर्स का यह वर्ग कुछ नया ट्राई करता है। इस बार प्रत्याशियों के नाम, शिक्षा और उम्र फैसला करेगी कि वोटों का यह सैलाब किसको किनारे लगाता है।
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