जबलपुर। सागर जिले में हुए एक मासूम लड़की के रेप और हत्या के मामले में कोर्ट ने 46 दिन में हत्यारे को फांसी की सजा सुनाई थी। हालांकि यह कोर्ट का निर्णय था और पुलिस व अभियोजन की सक्रियता का मामला लेकिन सीएम शिवराज सिंह व भाजपा के नेताओं ने इसे व इसके जैसे दूसरे मामलों को अपनी सफलता की तरह प्रचारित किया। अब हाईकोर्ट ने उसे ना केवल खारिज किया बल्कि सजा सुनाने वाले जज पर भी गंभीर टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने कहा कि 'जजों को कभी खून का प्यासा नहीं होना चाहिए'। हालांकि, ऐसे मामलों में कभी राजनीति नहीं होती लेकिन जब खुद सीएम शिवराज सिंह ने शुरू कर दी है तो अब विपक्षी कह सकते हैं कि सरकार ने इस मामले में सजा दिलाने की तमाम कोशिशें सिर्फ निचली अदालत में ही कीं थीं। हाईकोर्ट में सरकार सजा बरकरार रखवाने में बिफल रही।
मप्र हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच के जस्टिस जेके माहेश्वरी व आरके श्रीवास्तव ने खुरई (सागर) में नाबालिग से रेप और हत्या के आरोपी युवक की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। बैंच ने अपनी टिप्पणी में आगे कहा कि फांसी की सजा सुनाने के पूर्व अपराध, अपराधी की परिस्थितियां, हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का ध्यान रखा जाना चाहिए। मानवीय पहलुओं को दृष्टिगत रखकर विशेष सावधानी बरती जाना चाहिए।
आजीवन कारावास का नियम है, फांसी अपवाद
कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि हत्या के मामलों में आजीवन कारावास की सजा नियम है, जबकि फांसी अपवाद है। कोर्ट ने कहा कि मानव जीवन की रक्षा का सिद्धांत किसी की जान ज्यूडिशियली तरीके से लेने से रोकता है लेकिन इसे तब नहीं रोकना चाहिए जब मामला विरल से विरलतम हो और दूसरे वैकल्पिक रास्ते खत्म हाे गए हों।
एक साल पहले बोरी में बंद मिला 9 साल की बच्ची का शव
एक साल पहले 13 अप्रैल 2017 को खुरई थाना क्षेत्र में एक 9 साल की बच्ची से रेप और हत्या के मामले में पुलिस ने सुनील आदिवासी (21) नाम के युवक को गिरफ्तार किया था। पुलिस को उसकी टपरिया से इस बच्ची का शव बोरी में बंद मिला था। खुरई एडीजे सुमन श्रीवास्तव ने इस मामले में विचारण के बाद 19 जून 2018 को मामले को रेयरेस्ट ऑफ रेयर मानते हुए सुनील को फांसी की सजा सुनाई थी। जिला कोर्ट ने सजा की पुष्टि के लिए केस जबलपुर हाईकोर्ट भेजा था।
फैसले में अपराधी की विभिन्न परिस्थितियों का जिक्र किया
बैंच ने सुप्रीम कोर्ट के बचन सिंह विरुद्ध शासन के मामले का जिक्र करते हुए कहा कि फांसी की सजा देने से जघन्यता बढ़ाने वाली परिस्थितियों के साथ-साथ सजा कम करने की परिस्थितियों पर भी आवश्यकतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए। पूर्व योजना, अत्यधिक क्रूरता, असामान्य नीचता, सेना, पुलिस या अन्य लोक सेवक की कार्य के दौरान हत्या जघन्य है। जबकि अत्यधिक मानसिक या भावनात्मक अनियमितता के चलते किए गए अपराध, आरोपी की कम या अत्यधिक आयु, उसके सुधार की गुंजाइश और दूसरे के दबाव में किए गए अपराध सजा कम करने की परिस्थितियां निर्मित करते हैं।
अपराधी मां का अकेला सहारा है, उम्र भी बहुत कम है
कोर्ट ने कहा कि आरोपी की उम्र बहुत कम है। वह महज 21 साल का है। पहला अपराध है इसलिए उसके सुधार की गुंजाइश है। वह अपनी मां का इकलौता सहारा है, इसलिए उसकी सजा में बदलाव किया जा रहा है।
सभाओं में फांसी की सजाओं के आंकड़े सुनाते हैं शिवराज सिंह
भारत में किसी भी सरकार की जिम्मेदारी है कि वो नागरिकों का जीवन स्तर बढ़ाए। ऐसी पुलिस प्रणाली विकसित करे कि लोग अपराध ही ना करें। अपराधियों में से अपराध की भावनाएं बाहर निकाले लेकिन इन दिनों सीएम शिवराज सिंह जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान होने वाली आम सभाओं में फांसी की सजाओं के आंकड़े गिनाते हैं। कुछ इस तरह मानो यह उनकी सफलता है, जबकि यह किसी भी मुख्यमंत्री की सबसे बड़ी बिफलता है कि उसके शासनकाल में जघन्यतम अपराध हो रहे हैं।
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