मंडला। शिक्षक दिवस के पूर्व शिक्षा के निजीकरण की खबरों का खुलासा होने सरकार द्वारा शिक्षा को पूंजी पतियों और व्यवसायियों के हाथों में सौंपकर शिक्षा के व्यवसायीकरण करने , स्कूलों में शिक्षकों का एक और नया केडर बनाने की नीति को लेकर अध्यापकों ने इसका विरोध जताया है शिक्षा का भविष्य काला न बनें इसलिए इस शिक्षक दिवस पर अध्यापकों ने स्कूलों में काले वस्त्र धारण कर अपनी उपस्थिति दी।
राज्य अध्यापक संघ के जिला शाखा अध्यक्ष डी के सिंगौर ने बताया कि सरकार द्वारा जहां एक ओर शिक्षा को निः शुल्क और अनिवार्य बनाकर शिक्षा में क्रांति लाने की कोशिशे पूरी भी नहीं कर पाई और पूंजी पतियों के दबाव में जिनका एक मात्र लक्ष्य धन कमाना होता है सरकार यह आत्मघाती निर्णय ले रही है । शिक्षा पूंजीपतियों के हाथों में जाते ही शिक्षा गरीबों से दूर होते चली जायेगी और यह सिर्फ अमीरों के लिये रह जायेगी । सरकार ने पहले स्कूलों को शिक्षक और संसाधन विहीन कर आरटीई के तहत 25%बच्चों को निजी स्कूलों प्रवेश दिलाकर करोड़ो रुपए फीस के रूप में निजी स्कूलों को देकर सरकारी स्कूलों को खस्ताहाल कर दिया और इसी खस्ता हाल की दुहाई देकर अब निजीकरण की बात कर रही है।
प्रारम्भ में सरकार उन स्कूल संचालको को स्कूल सौपने जा रही है जो अपने शैक्षणिक संस्थानों में खुली लूट मचा रखी है जहां कापी पुस्तक से लेकर ड्रेस और अन्य सभी में कमीशन बाजी होती है मंडला के ही एक निजी स्कूल में प्ले ग्रूप से लेकर केजी 2 तक के बच्चों की फीस तीस हजार है साल में एक दिन जन्म दिन सेलिब्रेट करने के नाम पर बारह सौ रुपए फीस ली जाती है । अध्यापक वर्षो से मांग कर रहे है कि शिक्षकों में भेदभाव और शोषण को समाप्त कर शिक्षा में शुचिता लाने के लिये शिक्षकों के कई केडर समाप्त किये जायें और एक ही केडर शिक्षक रखा जाये । लेकिन सरकार ने ऐसा न कर उलटे एक और नया केडर प्राथमिक शिक्षक माध्यमिक शिक्षक और उच्च माध्यमिक शिक्षक बना दिया । शिक्षा के निजीकरण से भारतीय संस्कृति को भी खतरा बन सकता है।
जबकि प्रदेश से लेकर केन्द्र तक भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाली सरकार है । यूरोपीय देशों तक में शिक्षा का पूरा विषय सरकार अपने हाथों में रखती है इसके उलट यहां सरकार अपने ही हाथों से जमी जमाई शासकीय व्यवस्था को निजी हाथों में सौपकर शिक्षा के बने बनाए ताना बाना तहस नहस करने मैं लगी हुई है। इसका भंयकर दुष्परिणाम आगे देखने को मिलेगा।
सुनील नामदेव भजन गवले.पतिराम डिबरिया. प्रकाश सिंगोर. नीलकंठ सिंगोर. श्याम बैरागी. संजीव दुबे. नवलकिशोर. कन्हैया बरमैया. ओंकार सिंह. नंदकिशोर कटारे. अभित गुप्ता.मुकेश बैरागी. सनातन सैनी. संजय परस्ते. शहजाद खान. आशीष तिवारी. अजीत धुर्वे.संजय सिंगोर. साजिद खान. संजीव सोनी. ब्रजेश तिवारी. जयमार्को नफीस खान. ब्रजेश डोंगसरे. नमिता निकलेकर.जगदीश. उमेश यादव. विनीत मिश्रा प्रदीप पटेल सीमा चौधरी. संतोष बघेल. मोहन यादव. लक्ष्मी अग्रवाल. अजय मरावी.मधु मरावी. स्वाती पाठक.कुसुम ओम.सीता साहू.मूलचन्द कुंजाम बसंत हरदहा आदि ने सरकार की काली नीति का काले कपड़े पहन कर विरोध जताया ।
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