मध्यप्रदेश से भी दागी नेताओं को संसद और विधानसभा में पहुँचते रहे हैं। टिकट वितरण की उहापोह में पक्ष हो या विपक्ष को यह सोचने की फुर्सत नहीं मिलती कि वे जिसे अपने राजनीतिक दल का नुमाइंदा बना रहे है उसके दामन पर कितने दाग लगे हैं। टिकट मिलने के बाद ऐसे लोग शान से अपना नामांकन भरते हैं, और “मुकदमा विचाराधीन” है के कवच में इन पवित्र सदनों में पहुँच जाते हैं। राजनीतिक दलों का आलम यह है कि सुप्रीम कोर्ट के बार-बार कहने के बाद भी इंनने दागी नेताओं के बारे में मांगी गई जानकारी शीर्ष अदालत को अब तक नहीं दी है, न ही दागी नेताओं पर मुकदमा चलाने के लिए विशेष अदालतों के गठन के बारे में कोई संतोषजनक जवाब दिया है।
इस रवैये पर अदालत ने सख्त नाराजगी जताई है। राजनीति में अपराधीकरण पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी है कि किसी भी तरह के अपराध में शामिल या पुख्ता आरोपों का सामना कर रहे व्यक्ति को चुनावी राजनीति में आने से रोका जाए। सर्वोच्च अदालत इसी मामले पर दायर याचिका की सुनवाई कर रही है। उसने सरकार से दागी सांसदों और विधायकों के लंबित मुकदमों और उन्हें निपटाने के बारे में उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी मांगी है। इस मामले में सरकारे अब तक जिस तरह से हीला-हवाली करती आई है, उससे संकेत यही मिलता है कि वह कहीं न कहीं दागियों को बचाने में लगी है। अगर ऐसा है तो यह एक गंभीर बात है।
इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि चुनावी राजनीति में दागियों की घुसपैठ को लेकर अभी तक ऐसा कोई ठोस कानून नहीं बन पाया है, जिससे पवित्र सदनों में आपराधिक छवि वाले लोगों को आने से रोका जा सके। हालांकि चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में गंभीरता से पहल की है, लेकिन राजनीतिक दलों की ओर से अब तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है। इसमें संदेह नहीं है कि राजनीति में दागदार लोगों का प्रवेश राजनीतिक दलों की मेहरबानी से ही होता है। वे चुनाव जीतने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं और इसी वजह से आपराधिक छवि वाले नेताओं को चुनाव में उतारने से जरा भी नहीं हिचकते।
साफ़ बात है, जो व्यक्ति धन-बल की ताकत से राजनीति में प्रवेश करेगा और सत्ता हासिल करेगा, और प्रश्न यह है की वह देश का क्या कल्याण करेगा! राजनीतिक दलों का यही स्वार्थ राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा देने वाला सबसे बड़ा कारण है। इसलिए राजनीति को दागदार नेताओं से मुक्त करना है तो इसके लिए पहल दलों को ही करनी होगी। उन्हें यह संकल्प लेना होगा कि वे ऐसे किसी उम्मीदवार को चुनाव मैदान में नहीं उतारें जिसके खिलाफ कोई मुकदमा या गंभीर आरोप हो या जिसकी छवि एक अपराधी के तौर पर हो। मध्यप्रदेश विधानसभा में टिकट वितरण से इस सावधानी की शुरुआत हो सकती है। राजनीतिक दलों के साथ जन सामान्य और मीडिया दायित्व भी बनता है वो ऐसे लोगों के नाम उजागर करें जो दागी होकर इन सदनों में हैं या जाने की जुगाड़ में हैं।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।