कांग्रेस हाईकमान अर्थात राहुल गाँधी द्वारा आसन्न विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण की जो प्रणाली अपनाई जा रही है। उससे परम्परागत उम्मीदवार नाराज है उन्होंने टिकट वितरण प्रणाली पर प्रशन चिन्ह खड़े करना शुरू कर दिये हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के पूर्व और वर्तमान विधायक उस जाँच एजेंसी की कार्यप्रणाली से नाखुश हैं, जिसे टिकट वितरण के पहले उम्मीदवारों के चयन का जिम्मा सौंपा गया है। नाराज नेताओं का आरोप है कि उक्त जाँच एजेंसी ने सर्वे करने में अनेक गलतियाँ की हैं। इन गलतियों के कारण वर्षों से काम कर रहे कार्यकर्ता तो उपेक्षित हुए है। मौजूदा विधायकों के टिकट भी कटते नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस हाईकमान ने दिल्ली की और दौड़ते कांग्रेस टिकट के इच्छुक लोगों को अपने राज्यों में ही थामे रखने के लिए कुछ नये प्रयोग किये हैं इनमें एक निजी जाँच एजेंसी द्वारा कराया लोकप्रियता सर्वे भी शामिल है। गुपचुप रूप कराए जाने वाले सर्वे की जानकारी उजागर होने से कांग्रेस के उम्मीदवारों ने सर्वे की कार्यप्रणाली का बारीकी से अध्ययन किया और उसकी खामियां खोज ली। अब तीनों राज्यों से एक स्वर में इस एजेंसी की कार्यप्रणाली पर एक फैक्ट शीट तैयार कर अहमद पटेल के माध्यम से राहुल गाँधी तक भेजने की कोशिश में एक पूर्व सांसद लगे हुए है। उनके साथ वे लोग जुड़ गये हैं, जिन्हें पिछले चुनाव के कम वोटों से शिकस्त मिली थी और वे आगामी चुनाव लड़ना चाहते हैं।
प्रदेश कांग्रेस कमेटियों द्वारा घोषित मापदंड भी जी का जंजाल बने हुए हैं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस से टिकट प्राप्ति के लिए आपका फेसबुक पर 15 हजार लाइक्स के साथ होना जरूरी है। इससे कम में काम नहीं चलेगा। इसके अलावा ऐसे कई और मापदंड प्रदेश कांग्रेस ने बनाये हैं। अन्य राज्यों में भी निर्णय भी अजीबोगरीब हो रहे हैं, निर्णय लेते समय प्रदेश के पदाधिकारी यह भी ध्यान रखने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं कि कांग्रेस की अन्य राज्यों में नीति क्या हैं ? अभी तो कांग्रेस का एक मात्र लक्ष्य मध्यप्रदेश में कैसे भी प्रदेश की 230 सीटों के लिए उम्मीदवार जुटाना है वैसे अभी तक उसके सारे गुटों में एक राय नहीं है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ द्वारा दिग्विजय शासन काल और दिए गये कुछ बयानों से अन्य गुट अपने को असहज महसूस कर रहे हैं। इसी तर्ज पर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी लिए गये निर्णयों से कांग्रेसजन दुखी है।
इससे पहले कांग्रेस में टिकट दिल्ली दरबार को मिले फीडबैक के आधार पर बंटते रहे हैं। अब यह प्रथा समाप्त कर ग्राउंड से इंटेलिजेंस रिपोर्ट मंगाने की नई कवायद शुरू हुई है। यह कवायद आम कांग्रेसजन को रास नहीं आ रही है पर कोई विकल्प भी तो नहीं है दिल्ली दरबार का।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।