दूध का ये जानलेवा कारोबार | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
भारत की खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में बेचे जानेवाले 68.7 फीसदी दूध एवं दूध से बनी चीजों में मिलावट का कारोबार होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मिलावट के लिए डिटर्जेंट पाउडर, यूरिया, स्टार्च, ग्लूकोज, फॉर्मलिन, सफेद पेंट जैसी बेहद नुकसानदेह चीजों का उपयोग किया जा रहा है। ऐसी मिलावटों से दूध गाढ़ा दिखता है और ज्यादा दिनों तक बचा रहता है। यह उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के साथ खतरनाक खिलवाड़ है।

भारत में रोजाना करीब 14.68 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है। प्रति व्यक्ति खपत का हिसाब 480 ग्राम है। दूध और उससे बननेवाले उत्पाद- दही, खोआ, मिठाइयां आदि-बच्चों से लेकर बूढ़े तक सभी खाते हैं। ऐसे में इस मिलावट और इसके दुष्प्रभावों के बारे में उपभोक्ताओं का जागरूक होना बहुत जरूरी है। एक तथ्य यह भी है कि दक्षिण भारतीय राज्यों की तुलना में उत्तर के राज्यों में मिलावट की समस्या कहीं अधिक है। 

इसके अलावा दूध के उत्पादन, प्रसंस्करण और वितरण की प्रक्रिया में समुचित साफ-सफाई आदि के मानकों का भी पालन नहीं किया जाता है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत सरकार को कुछ जरूरी सुझाव दिए थे। इस संगठन का आकलन है कि खाद्य पदार्थों, खासकर दुग्ध उत्पादों, में जारी मिलावट पर अगर रोक नहीं लगी, तो 2025 तक भारत के 87 प्रतिशत लोग कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।

दूसरी और कीटनाशकों और उर्वरकों के बेतहाशा इस्तेमाल से अनाज भी आज शुद्ध नहीं रह गये हैं। इस स्थिति में हमारी आबादी की सेहत तो खतरे में है ही, इसके साथ निकट भविष्य में विदेशी बाजारों में भारतीय उत्पादों को लेकर नकारात्मकता भी देखने को मिल सकती है। भारत दुग्ध उत्पाद और अनाज का बड़े पैमाने पर निर्यात करता है। इसलिए खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण को मिलावट रोकने और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक अभियान चलाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि खाने-पीने की चीजों की जांच और उन्हें उपभोग के लायक मानने के संबंध में तमाम नियम बने हुए हैं और मानक निर्धारित हैं, उन्हें लागू करने के तंत्र में सुधार की जरूरत है।

तेजी से बढ़ रही हमारी अर्थव्यवस्था को अगर अग्रणी बने रहना है, तो खाद्य उत्पादन और स्वास्थ्य क्षेत्र पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। मिलावट के साथ पानी और हवा के बढ़ते प्रदूषण की मुश्किलों से हमारे सामने बड़ी चुनौती है। पानी की कमी, बीमारियों का बढ़ना, खस्ताहाल शहरी जीवन जैसी समस्याएं खान-पान से जुड़ी दिक्कतों को भयावह बना सकती हैं। ऐसी स्थिति में केंद्र और राज्य सरकारों को ठोस और त्वरित पहल करना चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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