गांव में स्कूल खोलना था, इसलिए IAS बन गया | Inspirational story hindi

Bhopal Samachar
जिद, जुनून और सफलता की कई कहानियां सुनीं होंगीं परंतु यह कहानी कुछ अजीब सी जिद की है। एक होनहार लड़का जो इंजीनियर बन चुका था, अपने गांव में एक हायर सेकेंड्री स्कूल खोलना चाहता था। उसे पता चला कि गांव में स्कूल तो केवल कलेक्टर ही खुलवा सकता है। बस फिर क्या था, नौकरी छोड़ी, पार्टटाइम वेटर का काम किया और आईएएस की तैयारी शुरू कर दी। 1-2-3 नहीं लगातार 6 बार फेल हुआ लेकिन हार नहीं मानी और 7वीं बार यूपीएससी क्लीयर। अब जयगणेश एक आईएएस अफसर है। 

पढ़ाई में शुरू से ही टॉपर थे
जयागणेश के पिता गरीब थे। लेदर फैक्टरी में सुपरवाइजर का काम कर हर महीने सिर्फ 4,500 तक ही कमा पाते थे। परिवार में अक्सर पैसों में कमी रहती थी। चार भाई-बहनों में जयागणेश सबसे बड़े थे ऐसे में बड़े होने के कारण घर  की खर्च की जिम्मेदारी भी उन पर ही थी। बता दें, वह शुरू से ही पढ़ाई में अच्छे थे। 12वीं में उनके 91 प्रतिशत अंक आए थे। फिर उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू कर दी।

नौकरी मिलने के बाद स्कूल की कमी खलने लगी
इंजीनियरिंग की डिग्री मिलने के बाद इन्हें 25,00 प्रति महीना पर एक नौकरी भी मिल गई, लेकिन जल्द ही उन्हें यह एहसास होने लगा कि शिक्षा उनके गांव के बच्चों के लिए भी बेहद जरूरी है। क्योंकि उन्हें गांव के पिछड़ेपन और बच्चों के स्कूल न जाने पर दुख होता था। उन्होंने बताया- उनके गांव के अधिकतर बच्चे 10वीं तक ही पढ़ाई कर पाते थे और कई बच्चों को तो स्कूल का मुंह ही देखना नसीब नहीं होता था। जयगणेश बताते हैं, कि उनके गांव के दोस्त ऑटो चलाते हैं या शहरों में जाकर किसी फैक्ट्री में मजदूरी करते हैं। अपने दोस्तों में वह इकलौते थे जो यहां तक पहुंचे थे।

स्कूल तो कलेक्टर ही खोल सकता है
इसी दौरान उन्हें पता चला कि बदलाव तो केवल कलेक्टर ही ला सकते हैं। इसलिए उन्होंने अपना जॉब छोड़ा और सिविल सर्विस की तैयारी करने शुरू कर दी। जल्द ही किसी से भी मार्गदर्शन नहीं मिलने के कारण रास्ता कठिन दिखने लगा। अपने पहले दो प्रयास में तो ये प्रारंभिक परीक्षा भी नहीं पास कर पाए। बाद में उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग के जगह सोशियोलॉजी को चुना। इसका भी फायदा नहीं हुआ और यह तीसरी बार में भी फेल हो गए।

कैंटीन में वेटर का काम किया
जिसके बाद उन्हें चेन्नई में सरकारी कोचिंग के बारे में मालूम चला जहां आईएएस की कोचिंग की तैयारी करवाई जाती है। तैयारी करने के लिए ये चेन्नई चले गए। वहां एक सत्यम सिनेमा हॉल के कैंटीन में बिलिंग ऑपरेटर के तौर पर काम मिल गया। जिसके बाद उन्हें इंटरवल के वक्त उन्हें वेटर का काम करना पड़ता था। उन्होंने बताया मुझे मेरा बस एक ही मकसद था। कैसे भी करके IAS ऑफिसर बनना चाहता हूं।

करता करता मिल रही थी सफलता, 6वें प्रयास में इंटरव्यू में चूक गए
जयागणेश ने काफी मेहनत से पढ़ाई की, फिर भी पांचवी बार में सफलता हासिल नहीं कर पाए। आगे पढ़ाई करने के लिए पैसे की कमी बहुत ज्यादा आड़े आ रही थी। अब उन्होंने यूपीएससी की तैयारी कराने वाले एक कोचिंग में सोशियोलॉजी पढ़ाना शुरू कर दिया। अपने छठे प्रयास में उन्होंने प्रारंभिक परीक्षा तो पास कर ली लेकिन इंटरव्यू पास करने से चूक गए।

अंतत: जयागणेश आईएएस बन गया
छठीं बार असफल होने के बाद भी उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा। जिसके बाद उन्होंने 7वीं बार यूपीएससी की परीक्षा दी। जब वे 7वीं बार परीक्षा में बैठे तो प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू भी पास कर गए। उन्हें 7वीं बार में 156वां रैंक मिल गई। 
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