नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम के पास आय के कई साधन हैं। इसके अलावा उसने कुछ ऐसे नियम भी बना रखें जो उसकी कमाई का जरिया बन गए हैं। ऐसा ही एक नियम है 'लैप्स पॉलिसी।' इसके माध्यम से एसआईसी हर साल कम से कम 5000 करोड़ रुपए कमाती है।
रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 में LIC ने 22,178.15 करोड़ रुपये के रेग्युलर प्रीमियम पॉलिसी बेची, जो कि देश की पूरी इंश्योरेंस इंडस्ट्री का 44 प्रतिशत है। अगर लैप्स पॉलिसी का रेश्यो निकाले तो ये करीब 5000 करोड़ रुपए है। यानी हर साल कंपनी भारतीय नागरिकों का करीब 5000 करोड़ हजम कर जाती है जबकि 'लैप्स पॉलिसी' नियम के कारण ग्राहक शर्मिंदा होता है और अपने पैसे वापसी की मांग तक नहीं करता। चौंकाने वाली बात तो यह है कि आज तक देश भर में किसी भी व्यक्ति या संस्था ने इस नियम को शिथिल करने या संशोधित करने की मांग नहीं की।
दरअसल भारत में कई लोग लोग बीमा इमरजेंसी हालात से निपटने के लिए नहीं बल्कि टैक्स बचाने के लिए लेते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश में ऐसे लोगों की संख्या कम है जो बीमा खरीदने के 1 साल बाद भी प्रीमियम भरते हैं, जिसे पर्सिस्टेंसी रेशियो कहते हैं। भारत में पर्सिस्टेंसी रेशियो नीचे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 25 फीसदी बीमाधारक एक साल के अंदर ही प्रीमियम भरना बंद कर देते हैं और उनकी पॉलिसी लैप्स हो जाती है। ऐसा होने पर बीमा की पूरी रकम इंश्योरेंस कंपनी के पास रह जाती है।
इसी आधार पर साल वित्त वर्ष 2016-17 में एलआईसी की लैप्स पॉलिसी की रकम निकाली गई तो ये 5000 करोड़ रुपए के करीब रही। देश के 25 फीसदी लोग बीमा खरीदने के सालभर बाद ही अलग-अलग वजहों से पॉलिसी को बंद कर देते हैं। जिसका फायदा बीमा कंपनी को होता है।
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