भोपाल। मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सिंह सरकार चुनाव जीतने के लिए हर संभव हथकंडा अपना रही है। तीन साल पहले जातिवाद की राजनीति शुरू की थी। आरक्षित जातियों को लुभाने के लिए खजाने खोल दिए। यहां तक सीएम शिवराज सिंह ने 'माई का लाल' जैसा भड़काऊ बयान तक दे डाला। अब एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के बाद जब विरोध मुखर हो गया तो सरकार बैकफुट पर आ गई। एक बार फिर मंदिरों की राजनीति शुरू की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद की नियमित सुनवाई शुरू होने जा रही है। इससे पहले ही सोशल मीडिया पर भाजपा नेताओं ने माहौल को गर्माना शुरू कर दिया है। बहस सुप्रीम कोर्ट में वकीलों के बीच होनी है परंतु मध्यप्रदेश में भाजपा के नेता और शिवराज सिंह सरकार से लाभान्वित हुए गैर राजनैतिक लोग सोशल मीडिया पर दलीलें दे रहे हैं। माहौल को गर्म करने के लिए सिगड़ी फूंकी जा रही है ताकि चुनावी रोटियां सही तरह से सिंक सकें।
इधर बीजेपी सरकार ने भी अलग ही ऐजेंडा फिक्स कर लिया है। विधानसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में हिंदुत्व और हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को लेकर छिड़े सियासी संग्राम के बीच कांग्रेस और बीजेपी में खुद को हिंदू धर्म प्रिय बताने की कोशिश तेज हो गई है। जिन मंदिरों पर पिछले सालों में सरकारी डंडा चला था वहां अब माथे टेके जा रहे हैं। सिंहस्थ महाकुंभ में सीएम शिवराज सिंह ने मंदिरों में पुजारियों की नियुक्ति में आरक्षण की बात कह दी थी। अब पुजारियों का सम्मान किया जा रहा है।
कांग्रेस छीन रही है हिंदुत्व का कार्ड
दरअसल मध्यप्रदेश में साफ्ट हिंदुत्व की परंपरा है। कांग्रेस चुनाव में हिंदुत्व की राह पर चल रही है। भोपाल दौरे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को शिवभक्त बताया गया था। चित्रकूट, सतना में उनको रामभक्त बताया गया। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में रामपथ वन गमन विकसित करने का एलान किया है। यह ऐलान शिवराज सिंह सरकार ने भी किया था परंतु काम नहीं किया।
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