भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार ने पिछले 1 साल में शराब की कीमतें सिर्फ 1 बार बढ़ाईं हैं जबकि पेट्रोल/डीजल के दाम 100 बार बढ़ा दिए गए। शायद शिवराज सिंह सरकार को आम आदमियों के वोट से ज्यादा शराबियों के वोट की चिंता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि मध्यप्रदेश सरकार अगर शराब की लाइसेंस फीस केवल 9.30 फीसदी बढ़ा दे तो वह पेट्रोल 3.30 रुपए तक सस्ता कर सकती है। इससे शराब की सबसे छोटी बोतल (175 एमएल) के दाम केवल 5 रुपए ही बढ़ेंगे। राज्य में रोजाना 7 लाख लीटर शराब बिकती है। इस हिसाब से सालाना बिक्री करीब 25.50 करोड़ लीटर है। लीटर के हिसाब से यह बढ़ोतरी 30 रुपए के आसपास होगी।
सरकार की रोजाना कमाई 2.10 करोड़ ज्यादा होगी। यानी हर साल इससे 766 करोड़ मिलेंगे। इस अतिरिक्त राजस्व से सरकार पेट्रोल पर 3.30 रुपए का एडिशनल टैक्स घटाने की स्थिति में आ जाएगी। अभी वह हर लीटर पर 4 रुपए एडिशनल टैक्स ले रही है। राज्य में हर साल 230 करोड़ लीटर पेट्रोल बिकता है। इस फिक्स टैक्स से उसे 920 करोड़ मिलते हैं।
एडिशनल टैक्स 70 पैसे घटने से सरकार की कमाई घटकर 154 करोड़ ही रह जाएगी। घटे राजस्व की भरपाई वह शराब के राजस्व से हो जाएगी। पूर्व वित्त मंत्री समेत आर्थिक विशेषज्ञ यह मानते हैं कि सरकार को ऐसा करने में काेई परेशानी नहीं आनी चाहिए। पिछले 7 साल में सरकार की शराब से कमाई उतनी नहीं बढ़ी जितनी पेट्रोल डीजल से बढ़ी है।
ऐसे में उसके पास यह करने के अधिकार हैं। सरकार तर्क दे सकती है कि शराब की लाइसेंस फीस एक बार ही तय होती है। उसे दोबारा कैसे बढ़ाया जा सकता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर पेट्रोल के दाम एक साल में 100 बार बढ़ाए जा सकते हैं तो शराब की लाइसेंस फीस एक और बार बढ़ाने में क्या परेशानी? 5 साल पहले तक सरकार को शराब को महंगा करके पैसा कमाती थी लेकिन अब पेट्रोल उत्पादों पर टैक्स थोपकर ज्यादा पैसा कमा रही है।
सरकार नहीं जानती तेल का अर्थशास्त्र
शहर में ज्यादातर लोग अपने वाहन से चलते हैं। क्योंकि यहां का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम पूरी तरह असफल है। ऐसे में सरकार को यह समझ में नहीं आता कि बढ़ते तेल के दाम से आम आदमी की बचत घट रही है। उसके लिए घर चलाना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में पेट्रोल के दाम घटाकर सरकार एक बड़ी आबादी को राहत प्रदान करेगी। बेशक वह अपनी लाइसेंस फीस बढ़ाकर शराब से कमाई बढ़ाए।
राजेंद्र कोठारी, औद्योगिक मामलों के जानकार
शराब की खपत बढ़ी
राज्य सरकार ने शराब की खपत कम करने के कई उपाय जरूर किए हैं, लेकिन ये सब दिखावा ही थे। सालाना आधार पर शराब की खपत 8 फीसदी की दर से बढ़ रही है। 2016-17 तक शराब की खपत 25 करोड़ लीटर हो गई। एक वर्ष में सरकार ने विदेशी शराब के दाम 9.83 फीसदी ही बढ़ाए।
2016-17 के अंत तक सरकार को गैर पेट्रो पदार्थों से 16 हजार करोड़ रुपए की आय हुई थी। जीएसटी आने के बाद केंद्र सरकार इसमें 14 फीसदी कंपनसेशन दे रही है। 2017-18 में सरकार को 18.24 हजार करोड़ रुपए मिले हैं। इस साल भी इतने ही मिल जाएंगे।
10 फीसदी आबकारी राजस्व में बढ़ोतरी का अनुमान है। यानी 9000 करोड़ रुपए यहां मिल सकते हैं।
पेट्रोल पर 4 रुपए एडिशनल टैक्स घटाने से सरकार को 920 करोड़ और सेस घटने से 500 करोड़ रुपए का नुकसान होगा। यानी सरकार की आय घटकर 8000 करोड़ रुपए रह सकती है।
तीनो मदों को मिलाकर सरकार को कुल 33 हजार करोड़ रुपए मिलेंगे। अगर सरकार पेट्रोल-डीजल से एडिशनल टैक्स और सेस घटा ले।
शराब लॉबी का दबाव में है सरकार
हो सकता है राज्य सरकार पर शराब लॉबी का दबाव हो। अन्यथा शराब पर लाइसेंस फीस बढ़ाने का उसे पूरा अधिकार है। शराब के दाम बढ़ने से किसी को कोई परेशानी नहीं। लेकिन पेट्रोल के बढ़ते दाम तो जनआंदोलन खड़ा कर रहा है। बेहतर हो सरकार पेट्रोल सस्ता करे। भले ही भरपाई शराब से कर ले।
डॉ. श्रीराम तिवारी, अर्थशास्त्री
शराब पर टैक्स बढ़ाकर कैसे सस्ता हो सकता है पेट्रोल-डीजल
अगर सरकार पेट्रोल डीजल पर 3.30 एडिशनल टैक्स घटा दे तो उसकी सालाना कमाई 920 करोड़ से घटकर 154 करोड़ रह जाएगी। यानी 766 करोड़ रुपए कम।
इसकी भरपाई के लिए शराब की लाइसेंस फीस 9.30% बढ़ा देती है तो उसे 766 करोड़ रुपए की कमाई होगी। इसका भार एक शराब की बोतल पर 5 रुपए ही आएगा।
पूर्व मित्त मंत्री राघवजी के अनुसार
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