भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जबर्दस्त विरोध के बाद बयान जारी कर दिया कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम में संशोधन के बावजूद मध्यप्रदेश में बिना जांच के कोई गिरफ्तारी नहीं होगी परंतु अब सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या शिवराज सिंह के इस बयान का कोई मूल्य भी है या यह सिर्फ एक चुनावी जुमला है।
उत्तरप्रदेश में उपस्थित है एक उदाहरण
ऐसा ही एक उदाहरण उत्तरप्रदेश में उपस्थित है। सोशल इंजीनियरिंग के बाद उत्तरप्रदेश की सत्ता में आईं मायावती के शासन में मुख्य सचिव प्रशांत कुमार ने 29 अक्तूबर 2007 को सभी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों व पुलिस अधीक्षकों को सर्कुलर भेजकर निर्देश दिए थे कि हत्या-बलात्कार जैसे अपराधों में वे अपनी देखरेख में विवेचना करवाएं। त्वरित न्याय दिलाने के साथ यह भी ध्यान रखा जाए कि किसी निर्दोष व्यक्ति को परेशान न किया जाए। विवेचना में यदि मामला झूठा पाया जाता है तो धारा 182 के तहत केस दर्ज करवाने वाले के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
प्रशांत कुमार से पहले मुख्य सचिव रहे शंभूनाथ ने भी 20 मई 2007 को जारी आदेश में कहा था कि एससी-एसटी एक्ट में सिर्फ शिकायत के आधार पर पुलिस कार्रवाई न करे। प्रारंभिक जांच में अगर पहली नजर में आरोपी दोषी लगता है तभी उसे गिरफ्तार करें। शंभूनाथ ने यह आदेश मायावती के मुख्यमंत्री बनने के एक हफ्ते बाद ही जारी किए थे। इसमें कहा गया था कि अगर रेप जैसे मामले में एस-एसटी एक्ट लगाया जाता है तो पीड़िता के मेडिकल परीक्षण के बाद आरोप सही पाए जाने पर ही कार्रवाई की जाए। पुलिस को सिर्फ इस आधार पर एससी-एसटी एक्ट की धाराओं में कार्रवाई नहीं करनी चाहिए कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति, जनजाति से है।
क्या असर हुआ था
इन निर्देशों का एक असर यह हुआ कि उत्तरप्रदेश में फर्जी मामलों में काफी कमी आई। चूंकि फर्जी शिकायत करने वाले के खिलाफ धारा 182 की कार्रवाई के निर्देश थे इसलिए यह प्रभावी रहा परंतु यह केवल तभी तक प्रभावी रहा जब तक कि मायावती मुख्यमंत्री थीं। बीएसपी सरकार जाते ही कानून अपने मूल स्वरूप में लौट आया।
मध्यप्रदेश में क्या होगा
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान का असर केवल आचार संहिता लागू होने तक ही दिखाई देगा। जैसे ही आचार संहिता लागू होगी, पुलिस स्वतंत्र हो जाएगी और निर्देश को मानना ना मानना टीआई व एसपी पर निर्भर करेगा। नियम और निर्देश में यही अंतर है। नियम का पालन करना ही होता है परंतु निर्देश का पालन ना करने पर कोई दंड प्रावधान नहीं है।
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