भोपाल। सीएम शिवराज सिंह लगातार अपनी टीम की बातों में फंसे रहे। सही फीडबैक उनके पास तक ही नहीं पहुंचा। व्यापमं के विरोध से शुरू हुई उनकी तीसरी पारी 'माई का लाल' पर आकर टिक गई है। रथ का कांच फूट गया, मंच पर जूता आकर गिरा। कुल मिलाकर टीम शिवराज पूरी तरह से फेल हो गई। मध्यप्रदेश में शिवराज विरोधी लहर बढ़ते बढ़ते भाजपा विरोधी लहर बन गई। अब डैमेज कंट्रोल के लिए उमा समर्थकों को तवज्जो दी जा रही है। शिवराज सिंह जिन नेताओं को मुलाकात का समय नहीं देते थे, अब उन्हे सीएम हाउस से निमंत्रण आ रहे हैं।
अब प्रह्लाद पटेल की शरण में शिवराज
सांसद प्रह्लाद पटेल को कौन नहीं जानता। उमा भारती के काफी नजदीकी नेता रहे। नर्मदा भक्त माने जाते हैं। जमीनी नेता हैं लेकिन शिवराज सिंह की सत्ता में प्रह्लाद पटेल का महत्व शून्य हो गया था। यहां तक कि पार्टी की प्रमुख मीटिंगों में उन्हे निमंत्रण तक नहीं दिया जाता था। सीएम हाउस के दरवाजे प्रह्लाद पटेल के लिए नहीं खुलते थे, क्योंकि वो उमा भारती के खास थे। अब जब विरोध के बवंडर ने रास्ते रोक लिए तो स्वयंभू शिवराज का मुगालता टूटा। अपनी टीम के नंदकुमार सिंह चौहान जैसे दिग्गजों को छोड़कर प्रह्लाद पटेल से मदद मांग रहे हैं।
ओबीसी नेता क्या समाज की आवाज के खिलाफ हो जाएंगे
बीजेपी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक चुनाव से पहले ओबीसी वोटबैंक को साधने के लिए पार्टी प्रह्लाद पटेल को फुल पॉवर देने की तैयारी की जा रही है। दमोह से बीजेपी के सांसद प्रहलाद पटेल को सवर्ण और एससी-एसटी वर्ग के बीच मध्यस्थता करने की भी जिम्मेदारी सौंपी गई है। ओबीसी वोटबैंक को साधने के लिए बीजेपी आने वाले 10 सितंबर को सतना में ओबीसी महाकुंभ करने जा रही है लेकिन सवाल यह है कि क्या कई सालों से हाशिए पर चल रहे भाजपा के ओबीसी नेता अब शिवराज सिंह के साथ आएंगे। क्या किसी व्यक्तिगत फायदे के लिए समाज की आवाज के खिलाफ हो जाएंगे। और सबसे बड़ा सवाल कि क्या ओबीसी नेताओं के कहने पर ओबीसी वर्ग के लोग शिवराज सिंह को स्वीकार कर लेंगे।
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